भवदीय निवेदक "ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री "{मेरठ उत्तर प्रदेश }

"झा शास्त्री "मेरठ {उत्तर प्रदेश }

बुधवार, 15 सितंबर 2010

" "अनुभव और निदान " लोग क्या सोचते हैं,"जननी" के विषय में, यह तो हम नहीं जानते परन्तु शास्त्रों का क्या मत है ,आइये जानने की कोशिश करते हैं ? प्रायः वैदिक रीति से जिन जातकों के "पाणीग्रहण"संस्कार होते हैं ,उस संस्कार में समस्त विधान होने वाद भी वधु दायीं तरफ ही रहती है ,और जबतक वधु वामांग नहीं होती है तबतक यह संस्कार पूर्ण नहीं होता है | इसके लिए सभी जातकों को उनकी बात माननी पड़ती है- [१]-आप यज्ञ करेंगें और मेरे विचार के अनुसार करेंगे | [2]-आप दान करेंगे परन्तु सहमती हमारी होगी | [३]-आप तीनो अवस्थाओं में मेरी पालना करेंगे | [४]-आप जो संपत्ति लेंगें .मेरे विचार से | [५]-आपके पास जो भी संपत्ति हो या नहीं हो हमें जानकारी देंगें | [6]- आप हमें सभी ऋतुओं का आनंद प्रदान करेंगें | [७]-आपको यदि हमारी कोई बात अच्छी न लगे तो आप हमें एकांत में समझायेंगें न कि किसी के समक्ष हमारा अपमान करेंगें [और वर उसे स्वीकार करता है ,प्रतिज्ञां करता है वो भी अग्नि के समक्ष ] भाव -मेरे विचार से हम विवाह के वाद अपने संकल्प को भूल जाते हैं ,इसमें शास्त्रों का क्या दोष है ,हमें अपने संकल्प को याद रखना चाहिए .और उस पथ पर चलना चाहिए जिससे हमारे संस्कार की प्रेरणा समाज को भी मिले | [भाग दो कल] निवेदक -झा शास्त्री | jyotish evm karmkand ,Anubhav our nidan"

             "अनुभव और निदान "
 लोग क्या सोचते हैं,"जननी" के विषय में, यह तो हम नहीं जानते परन्तु शास्त्रों का क्या मत है ,आइये जानने की कोशिश करते हैं ? प्रायः वैदिक रीति से जिन जातकों के "पाणीग्रहण"संस्कार होते हैं ,उस संस्कार में समस्त विधान होने वाद भी वधु दायीं तरफ ही रहती है ,और जबतक वधु  वामांग नहीं होती है तबतक यह संस्कार पूर्ण नहीं होता है | इसके लिए सभी जातकों को उनकी बात माननी पड़ती है-
[१]-आप यज्ञ करेंगें और मेरे विचार के अनुसार करेंगे |
[2]-आप दान करेंगे परन्तु सहमती हमारी होगी |
[३]-आप तीनो अवस्थाओं में मेरी पालना करेंगे |
[४]-आप जो संपत्ति लेंगें .मेरे विचार से |
[५]-आपके पास जो भी संपत्ति हो या नहीं हो हमें जानकारी देंगें |
[6]- आप हमें सभी ऋतुओं का आनंद प्रदान करेंगें |
[७]-आपको यदि हमारी कोई बात अच्छी न लगे तो आप हमें एकांत में समझायेंगें न कि किसी के समक्ष हमारा अपमान करेंगें
[और वर उसे स्वीकार करता है ,प्रतिज्ञां करता है वो भी अग्नि के समक्ष ]  भाव -मेरे विचार से हम विवाह के वाद अपने संकल्प को भूल जाते हैं ,इसमें शास्त्रों का क्या दोष है ,हमें अपने संकल्प को याद रखना चाहिए .और उस पथ पर चलना चाहिए जिससे हमारे संस्कार की  प्रेरणा समाज को भी मिले | [भाग दो कल]  निवेदक -झा शास्त्री   | 

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