भवदीय निवेदक "ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री "{मेरठ उत्तर प्रदेश }

"झा शास्त्री "मेरठ {उत्तर प्रदेश }

सोमवार, 20 सितंबर 2010

"ज्योतिष एवं कर्मकांड "अनुभव और निदान"

"ज्योतिष एवं कर्मकांड ,
                         "अनुभव और निदान"
हम अपने शारीर की रक्षा के लिए ,मकान ,वस्त्र ,भोजन ,ओषधि ,तथा नाना प्रकार की चीजों से करते हैं ,किन्तु ये सभी वस्तुएं हमारी वाहरी सुरक्षा तो प्रदान करते हैं, किन्तु जो वास्तविक हमारी सुरक्षा है ="संस्कार " हम उसे विस्मृत कर रहे हैं | इसलिए हम अपने शरीर को अत्यधिक तपा नहीं पाते हैं | वैदिक रीती की परम्पराओं में "संस्कार" १६ प्रकार के होते हैं ,ये संस्कार होने से जातक को अपने जीवन यापन करने की वाह्य एवं आभ्यंतर क्षमता होती है | जिस तरह से हम भोजन करते हैं तो -रूधि ,मज्जा ,मांस ,हड्डी इत्यादि बनते हैं ,उसी तरह से "संस्कार" के द्वारा हमारा  विकास  तो होता ही है ,हमारे शरीर के तमाम अवयवों की क्षमता भी बढती है | आज हमारे कुछ ही संस्कार हो रहे हैं ,इसलिए हम कर्मठ नहीं हैं | हम पहला संस्कार का विवेचन कल करेंगे |
भवदीय निवेदक -झा शास्त्री |

1 टिप्पणी:

ज्योतिष सेवा सदन { पंडित कन्हैयालाल झा शास्त्री "}{मेरठ } ने कहा…

"ज्योतिष एवं कर्मकांड ,

"अनुभव और निदान"

हम अपने शारीर की रक्षा के लिए ,मकान ,वस्त्र ,भोजन ,ओषधि ,तथा नाना प्रकार की चीजों से करते हैं ,किन्तु ये सभी वस्तुएं हमारी वाहरी सुरक्षा तो प्रदान करते हैं, किन्तु जो वास्तविक हमारी सुरक्षा है ="संस्कार " हम उसे विस्मृत कर रहे हैं | इसलिए हम अपने शरीर को अत्यधिक तपा नहीं पाते हैं | वैदिक रीती की परम्पराओं में "संस्कार" १६ प्रकार के होते हैं ,ये संस्कार होने से जातक को अपने जीवन यापन करने की वाह्य एवं आभ्यंतर क्षमता होती है | जिस तरह से हम भोजन करते हैं तो -रूधि ,मज्जा ,मांस ,हड्डी इत्यादि बनते हैं ,उसी तरह से "संस्कार" के द्वारा हमारा विकास तो होता ही है ,हमारे शरीर के तमाम अवयवों की क्षमता भी बढती है | आज हमारे कुछ ही संस्कार हो रहे हैं ,इसलिए हम कर्मठ नहीं हैं | हम पहला संस्कार का विवेचन कल करेंगे |

भवदीय निवेदक -झा शास्त्री |