"श्रद्धाति +श्राद्धः " श्रद्दा से ही श्राद्ध का अभिप्राय है |
सनातन धर्म में ऋण से आप मुक्त तो हो ही नहीं सकते ,फिर भी बचने का प्रयास तो आपको करना ही पड़ेगा | मनुष्य प्रायः तीन प्रकार के विशेष ऋण से युक्त होता है [१]-देव ऋण [२]-ऋषि ऋण ,[३]-पित्री ऋण | आप पूजा के द्वारा भगवान को प्रसन्न करते हैं -तो देव ऋण से मुक्त होते हैं | तर्पण के द्वारा ऋषियों को भी आप प्रसन्न कर ,ऋण से मुक्त होते हैं | श्राद्ध पक्ष में ,तर्पण ,हंतकार की पूजा कर एवं ब्राह्मणों को भोजन कराकर पित्री ऋण से भी मुक्त होने का प्रयास करते हैं | हम कुछ और जानने का परयास करते हैं | [१]- पितरों की प्रसन्नता से हमें मिलता क्या है -संतान ,धन धान्य और सम्पन्नता |
[२]-हम रिनी किन किन पूर्वजों के होते हैं -पिता ,दादा परदादा ,माता ,दादी ,परदादी .नाना ,परनाना ,वृद्ध परनाना ,नानी ,परनानी वृद्ध परनानी |[३]-यह श्राद्ध करना किसको चाहिए -पिता के होते हुए पुत्र को नहीं करना चाहिए ,यदि पिता असमर्थ हों तो अनुमति से आप कर सकते हैं | पिता के न होने पर बड़े पुत्र या छोटे पुत्र तर्पण करना चाहिए ,सार्वजानिक, मिलजुलकर ,एकत्र होकर ही करना चाहिए ,यदि एकत्र न हो सकें तो फिर अलग -अलग जरुर करना चाहिए |
भाव - हम लोग श्रद्धा से तो श्राद्ध करते हैं, किन्तु विधि से कम करते हैं ,तो हमें विधियों के द्वारा भी करने चाहिए |
भवदीय -निवेदक झा शास्त्री मेरठ |
संपर्क सूत्र =९८९७७०१६३६.९३५८८८५६१६.
-एकबार सभी मित्रों को निःशुल्क ज्योतिष सेवा संपर्क सूत्र से मिलेगी । -आजीवन सदस्यता शुल्क -1100.rs,जिसकी आजीवन सम्पूर्ण जानकारी सेवा सदन के पास होगी ।। --सदस्यता शुल्क आजीवन {11.00- सौ रूपये केवल । --कन्हैयालाल शास्त्री मेरठ ।-खाता संख्या 20005973259-स्टेट बैंक {भारत }Lifetime membership fee is only five hundred {11.00}. - Kanhaiyalal Meerut Shastri. - Account Number 20005973259 - State Bank {India} Help line-09897701636 +09358885616
भवदीय निवेदक "ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री "{मेरठ उत्तर प्रदेश }
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रविवार, 26 सितंबर 2010
"श्रद्धाति +श्राद्धः " श्रद्दा से ही श्राद्ध का अभिप्राय है |
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"श्रद्धाति +श्राद्धः " श्रद्दा से ही श्राद्ध का अभिप्राय है |
सनातन धर्म में ऋण से आप मुक्त तो हो ही नहीं सकते ,फिर भी बचने का प्रयास तो आपको करना ही पड़ेगा | मनुष्य प्रायः तीन प्रकार के विशेष ऋण से युक्त होता है [१]-देव ऋण [२]-ऋषि ऋण ,[३]-पित्री ऋण | आप पूजा के द्वारा भगवान को प्रसन्न करते हैं -तो देव ऋण से मुक्त होते हैं | तर्पण के द्वारा ऋषियों को भी आप प्रसन्न कर ,ऋण से मुक्त होते हैं | श्राद्ध पक्ष में ,तर्पण ,हंतकार की पूजा कर एवं ब्राह्मणों को भोजन कराकर पित्री ऋण से भी मुक्त होने का प्रयास करते हैं | हम कुछ और जानने का परयास करते हैं | [१]- पितरों की प्रसन्नता से हमें मिलता क्या है -संतान ,धन धान्य और सम्पन्नता |
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