भवदीय निवेदक "ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री "{मेरठ उत्तर प्रदेश }

"झा शास्त्री "मेरठ {उत्तर प्रदेश }

शनिवार, 16 अक्तूबर 2010

"मुंडन संस्कार "

                                                  "मुंडन संस्कार "
संस्कार शब्द का भाव है -सम सरति इति "संस्कारः | जो हमें आगे ले चले | प्रायः सनातन धर्म में केवल "मुंडन संस्कार "  तक सभी समुदाय के लोग एक ही क्रम से चलते हैं | इस लिये कहा गया है ,"जन्मना जायते द्विजः ,कर्मना जायते शूद्रः" जन्म से सभी द्विज होते हैं ,समयानुसार कर्म के द्वारा वही शुद्र भी बन जाता है | जब  "माँ " के गर्भ में हम आते हैं ,और जबतक मुंडन संस्कार होता है, तब तक एक होते हैं ,किन्तु स्थूल शरीर में जब माया का प्रवेश होता है .तो हमारे कर्म ही हमें अलग करते रहते हैं | -आज हम अपने संस्कारों को विस्मृत करते जाते हैं , जिस कारण से हमारा पतन ही हो रहा है | यह "मुंडन संस्कार " प्रथम ,तृतीय या पंचम वर्ष में करना चाहिए | किन्तु लोग समयाभाव के कारण , यह संकर तो करते हैं ,पर बहुत जल्दी करते हैं ,जिस कारण से हमारे जातकों की मस्तिक रेखा प्रवल नहीं हो पाती है | आज हम जो कुछ भी करते हैं ,अपनी संतानों के लिये ही करते हैं ,किन्तु जब हमारी संताने -स्वस्थ, ही नहीं होगीं, तो शिक्षा ,संपत्ति ,में धन लगाने से क्या होगा | भाव -हमारे महर्षियों ने "षोडश संस्कार" का निर्माण हमारी प्रगति के लिये बनाये ,किन्तु हम कुछ अज्ञानतावश और कुछ जानबुझकर भी उनको नहीं अपनाते हैं | जरुरत है जानकारी की |हम वो शिक्षा तो ग्रहण करते हैं ,जो बाहरी रूप से तो हमें देखने में बढियां सी प्रतीत होती है किन्तु अन्दर से खोखली होती है | हमसे  जहाँ है ,जब हम ही नहीं होंगें तो जहाँ का क्या फायदा |
[प्रिय, मित्र बंधू  नमस्कार |
हम कोई कवि या लेखक नहीं हैं| हम तो आप तक ,.आप ही की वस्तु को पहुँचाना चाहते हैं -परत्येक जातक को ६ कर्म करने चाहिए [१ +2] दान लेना चाहिए ,और दान देना भी चाहिए |[३ +4]-पढना चाहिए और पढ़ना भी चाहिए | [५+६]-यज्ञ  करना चाहिए और यज्ञ करना भी चाहिए |
सो हम भी ये कर्म करना चाहते हैं ,हो सके तो आपलोग भी करें.?
भवदीय निवेदक झा शास्त्री 
किशनपुरी धर्मशाला देहली गेट [ मेरठ ]
 संपर्कसूत्र -९८९७७०१६३६.९३५८८८५६१६.

1 टिप्पणी:

ज्योतिष सेवा सदन { पंडित कन्हैयालाल झा शास्त्री "}{मेरठ } ने कहा…

"मुंडन संस्कार "

संस्कार शब्द का भाव है -सम सरति इति "संस्कारः | जो हमें आगे ले चले | प्रायः सनातन धर्म में केवल "मुंडन संस्कार " तक सभी समुदाय के लोग एक ही क्रम से चलते हैं | इस लिये कहा गया है ,"जन्मना जायते द्विजः ,कर्मना जायते शूद्रः" जन्म से सभी द्विज होते हैं ,समयानुसार कर्म के द्वारा वही शुद्र भी बन जाता है | जब "माँ " के गर्भ में हम आते हैं ,और जबतक मुंडन संस्कार होता है, तब तक एक होते हैं ,किन्तु स्थूल शरीर में जब माया का प्रवेश होता है .तो हमारे कर्म ही हमें अलग करते रहते हैं | -आज हम अपने संस्कारों को विस्मृत करते जाते हैं , जिस कारण से हमारा पतन ही हो रहा है | यह "मुंडन संस्कार " प्रथम ,तृतीय या पंचम वर्ष में करना चाहिए | किन्तु लोग समयाभाव के कारण , यह संकर तो करते हैं ,पर बहुत जल्दी करते हैं ,जिस कारण से हमारे जातकों की मस्तिक रेखा प्रवल नहीं हो पाती है | आज हम जो कुछ भी करते हैं ,अपनी संतानों के लिये ही करते हैं ,किन्तु जब हमारी संताने -स्वस्थ, ही नहीं होगीं, तो शिक्षा ,संपत्ति ,में धन लगाने से क्या होगा | भाव -हमारे महर्षियों ने "षोडश संस्कार" का निर्माण हमारी प्रगति के लिये बनाये ,किन्तु हम कुछ अज्ञानतावश और कुछ जानबुझकर भी उनको नहीं अपनाते हैं | जरुरत है जानकारी की |हम वो शिक्षा तो ग्रहण करते हैं ,जो बाहरी रूप से तो हमें देखने में बढियां सी प्रतीत होती है किन्तु अन्दर से खोखली होती है | हमसे जहाँ है ,जब हम ही नहीं होंगें तो जहाँ का क्या फायदा |

[प्रिय, मित्र बंधू नमस्कार |

हम कोई कवि या लेखक नहीं हैं| हम तो आप तक ,.आप ही की वस्तु को पहुँचाना चाहते हैं -परत्येक जातक को ६ कर्म करने चाहिए [१ +2] दान लेना चाहिए ,और दान देना भी चाहिए |[३ +4]-पढना चाहिए और पढ़ना भी चाहिए | [५+६]-यज्ञ करना चाहिए और यज्ञ करना भी चाहिए |

सो हम भी ये कर्म करना चाहते हैं ,हो सके तो आपलोग भी करें.?

भवदीय निवेदक झा शास्त्री

किशनपुरी धर्मशाला देहली गेट [ मेरठ ]

संपर्कसूत्र -९८९७७०१६३६.९३५८८८५६१६.