भवदीय निवेदक "ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री "{मेरठ उत्तर प्रदेश }

"झा शास्त्री "मेरठ {उत्तर प्रदेश }

मंगलवार, 19 अक्तूबर 2010

"आयाची मिस्र"

                   "आयाची मिस्र"
कभी -कभी हमें नाम से ही गुण एवं अवगुणों की जानकारी मिल जाती है | आया -अर्थात प्रसूति विशेषज्ञा
| आयाची अर्थात जिसने कभी जीवन में याचना नहीं की ,और जिसने की, उसको कभी अपने द्वार से खली हाथ नहीं जाने दिया |
हमलोग तो जीने के लिये पत्ता नहीं क्या -क्या करते हैं | आइये कुछ दूसरों से भी जीने की कला सीखते हैं :-
"आयाची" जी विद्वान तो थे ,ही कभी अपने लिये किसी से कुछ माँगा नहीं और यदि किसीने कुछ मांग भी लिये, तो परयास रखते थे, कि कुछ न कुछ जरुर दूँ | संयोग से पुत्र रत्न प्राप्त हुआ आपको ? परन्तु विद्या के तो धनी थे ,पर धन विहीन थे ,जिस कारण से प्रसूति विशेषज्ञा  ने जब आपसे पुत्र रत्न  की ,परितोषिक मांगी तो आपने ये उनसे कहा की जब हमारा पुत्र कमाएगा तो पहली कमाई हम आपको देदेंगें | संयोग से वो "आया " इतनी अच्छी थी ,की आपकी बात मान ली ,और जब पुत्र आपका ५ साल का हुआ तो bharman कर रहा था किसी नदी तट पर ,वहाँ से कोई राजा गुजर रहा था तो आपके बालक को देखकर प्रशन किया ,की आप कोन हैं ,और आपके अन्दर इतनी प्रतिभा कहाँ से आई -इस बात का जबाब आपके बलाकने इस प्रकार दिया -
         बलोहम जगदानन्द, न में बाला सरस्वती |
         अपुरने पंचमें वर्षे , वर्ण यमी जगत्र्यम |
हे राजन | हम अभी पाँच वर्ष के भी नहीं हुए हैं ,हम बालक जरुर हैं ,परन्तु हमारी सरस्वती बाला नहीं हैं ,यदि आप कहें तो .हम तीनों लोको का वर्णन करदें. | इस बालक की बात  पर "राजा " अत्यधिक प्रसन्न हुआ ,और बहुत धन धान्य  भेटं की , जब बालक अपने घर आया ,तो आपने पूछा कि इतने धन आपने कहाँ से चुराया है ,बलाकने आपको सारी कथा  सुनाई और आपने सारा धन उस "आया " को दे दिया | भाव - मित्र बंधू क्या नहीं है संसार में ,जरुरत है खोज की उस पाठ पर चलने की ,और जो मिले उसे भगवान का प्रसाद समझकर स्वीकार कर लेना चाहिए ,शायद सच के मार्ग पर चलने से दिक्कत तो आती है ,किन्तु जीत आपकी ही होगी |
भवदीय -झा शास्त्री मेरठ |

2 टिप्‍पणियां:

ज्योतिष सेवा सदन { पंडित कन्हैयालाल झा शास्त्री "}{मेरठ } ने कहा…

"आयाची मिस्र"

कभी -कभी हमें नाम से ही गुण एवं अवगुणों की जानकारी मिल जाती है | आया -अर्थात प्रसूति विशेषज्ञा

| आयाची अर्थात जिसने कभी जीवन में याचना नहीं की ,और जिसने की, उसको कभी अपने द्वार से खली हाथ नहीं जाने दिया |

हमलोग तो जीने के लिये पत्ता नहीं क्या -क्या करते हैं | आइये कुछ दूसरों से भी जीने की कला सीखते हैं :-

"आयाची" जी विद्वान तो थे ,ही कभी अपने लिये किसी से कुछ माँगा नहीं और यदि किसीने कुछ मांग भी लिये, तो परयास रखते थे, कि कुछ न कुछ जरुर दूँ | संयोग से पुत्र रत्न प्राप्त हुआ आपको ? परन्तु विद्या के तो धनी थे ,पर धन विहीन थे ,जिस कारण से प्रसूति विशेषज्ञा ने जब आपसे पुत्र रत्न की ,परितोषिक मांगी तो आपने ये उनसे कहा की जब हमारा पुत्र कमाएगा तो पहली कमाई हम आपको देदेंगें | संयोग से वो "आया " इतनी अच्छी थी ,की आपकी बात मान ली ,और जब पुत्र आपका ५ साल का हुआ तो bharman कर रहा था किसी नदी तट पर ,वहाँ से कोई राजा गुजर रहा था तो आपके बालक को देखकर प्रशन किया ,की आप कोन हैं ,और आपके अन्दर इतनी प्रतिभा कहाँ से आई -इस बात का जबाब आपके बलाकने इस प्रकार दिया -

बलोहम जगदानन्द, न में बाला सरस्वती |

अपुरने पंचमें वर्षे , वर्ण यमी जगत्र्यम |

हे राजन | हम अभी पाँच वर्ष के भी नहीं हुए हैं ,हम बालक जरुर हैं ,परन्तु हमारी सरस्वती बाला नहीं हैं ,यदि आप कहें तो .हम तीनों लोको का वर्णन करदें. | इस बालक की बात पर "राजा " अत्यधिक प्रसन्न हुआ ,और बहुत धन धान्य भेटं की , जब बालक अपने घर आया ,तो आपने पूछा कि इतने धन आपने कहाँ से चुराया है ,बलाकने आपको सारी कथा सुनाई और आपने सारा धन उस "आया " को दे दिया | भाव - मित्र बंधू क्या नहीं है संसार में ,जरुरत है खोज की उस पाठ पर चलने की ,और जो मिले उसे भगवान का प्रसाद समझकर स्वीकार कर लेना चाहिए ,शायद सच के मार्ग पर चलने से दिक्कत तो आती है ,किन्तु जीत आपकी ही होगी |

भवदीय -झा शास्त्री मेरठ |

honesty project democracy ने कहा…

बहुत ही सार्थक और सरहनीय प्रस्तुती.....वास्तव में आजकल अयाची मिश्र जैसे लोग लुप्त हो चुके हैं ...