भवदीय निवेदक "ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री "{मेरठ उत्तर प्रदेश }

"झा शास्त्री "मेरठ {उत्तर प्रदेश }

शनिवार, 4 दिसंबर 2010

"दक्ष कौन होगा ? पिता या पुत्र ,चिंतन[कुंडली ]के दशम भाव का करते हैं"

    "दक्ष कौन होगा ? पिता या पुत्र ,चिंतन[कुंडली ]के  दशम भाव का करते हैं"
प्रिय ,सहपाठीगण- हमारे विचार और " कुंडली" मत में बहुत ही अंतर है | संसार के जितनें भी जीव भूमंडल पर अवतरित होते हैं,वो माया में लिप्त होने कारण वही करते हैं जो माया चाहती है ,लोभ ,अर्थ ,काम और  मोह अपने पाश में यूँ जकड लेती है ,जो चाहकर भी नहीं निकलने नहीं  देती है ,इसलिए -सभी पिता अपने पुत्र के लिए ही अर्जित करते हैं ,न कि पुत्र पिता के लिए -पुत्र यह सोचकर कुछ नहीं करता है कि -पिता की उम्र समाप्त हो चुकी है-पिता यह सोचकर कुछ करते हैं ,कि अब मेरा क्या है -पुत्रों का ही तो है ||"कुंडली ,या ज्योतिष "-का भी मत जानिए -कुंडली में जो गणना होती है,वो पूर्व कृत कर्म की -आपने जो किया है ,और आप जो करेंगें उसका ही प्रतिफल आपको मिलेगा आप चाहकर भी इस विधान को नहीं बदल सकते हैं -यदि आप बदलना चाहेंगें तो या तो सांसारिक जीवन से अलग होना पड़ेगा और जब आप सांसारिक जीवन से अलग हो जायेंगें तो बदल तो देंगें, किन्तु ओ आप नहीं होंगें जो आप पहले थे ||="कुंडली "-का दशम भाव सशक्त भाव होता है -सभी संतानों की अभिलाषा यह रहती है कि हमें पिता के द्वारा सब कुछ मिले और कुछ को मिलती भी है ,कुछ पुत्र ही पिता के लिए निरंतर करते ही रहते हैं ,
[१]-यदि  सूर्य ,मंगल ,विराजमान हों दशम भाव में तो -जातक के पिता राजा की तरह जीवन यापन करते है,तथा संतानों को  सुख निरंतर मिलता रहता है |[२]-गुरु -यदि हों दशम भाव में तो पिता  को दिक्कत भले ही हो   संतानों को सुखदेने का अथक प्रयास करते हैं ओर उन पिता की संतानें अच्छी होतीं हैं ||
[३]-शनि यदि हों दशम भाव में  तो जातक के पिता -शाशन  ,धनिक  ,सर्वगुण संपन्न तो होतेहैं किन्तु -संतानें उनके मनोनुकूल नहीं चलती हैं ||
[४]-चंद्रमा वुध ,शुक्र हों तो -पिता सम्मान से तो जीते ही हैं ,व्यवहार कुशल ,लोकप्रिय ,अपने कार्य में दक्ष किन्तु संतानें कर्मठ नहीं होतीं हैं ||
[५]-यदि राहू या केतु हों दशम भाव में तो -पिता के पास कभी अटूट संपत्ति होती है तो कभी कुछ भी नहीं होती है किन्तु संतानें बहुत ही सरल होती हैं ||
भाव -हमें कर्मशील तो बने रहना ही चाहिए ,ओर संतान से विशेष अपने "तात" के लिये करना भी चाहिए-क्योकि जिनके पूर्वज प्रसन्न नहीं होते तो उनकी संतएं भी कभी भी प्रसन्न नहीं रहतीं हैं ||
[हम कल का विवेचन करेंगें"]-भवदीय निवेदक "झा शास्त्री [मेरठ '] राम -राम ||
     

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