भवदीय निवेदक "ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री "{मेरठ उत्तर प्रदेश }

"झा शास्त्री "मेरठ {उत्तर प्रदेश }

सोमवार, 6 दिसंबर 2010

"समर्पण ही सम्पन्नता का प्रतीक होता है "

     "समर्पण ही सम्पन्नता का प्रतीक होता है "
सम्पूर्ण शरीर मन के वशीभूत होता है ,आप चाहकर भी विमुक्त नहीं हो सकते ,किन्तु "हरि " की कृपा या अपने आपको समर्पित होने से कठिन से कठिन मार्ग भी सरल हो जाते हैं -आइये "भक्त प्रहलाद जी " के मुखारविन्द से जो आनंदमयी रस निकला उसका हमलोग भी आस्वादन करते हैं ,साथ ही उस पथपर चलने की कशिश भी करेंगें ||
रामनाम जपतां कुतो भयं=जो रामनाम का जप करते हैं ,उनको कभी भी भय नहीं होता है ||   सर्वताप समनैक भेषजम=चाहे गर्म हो या शरद ,शिशिर ,बसंत कुछ भी ,कोई भी ताप हो उस भक्त को समानबत [एक जैसा ] ही लगता है || पश्य्तात मम गात्र सन्निधौ = जब पिता भक्त प्रहलादजी से पूछते हैं कि अब कहो वत्स ? यह अग्नि का ताप तुमको  बिचलित नहीं कर रहा है   -तो प्रहलादजी कहते हैं -हे तात ? जो भगवान् को सबकुछ समर्पित कर देते हैं ,उनको कोई भी ताप नहीं सताता है -अर्थात सुख और दुःख एक सा प्रतीत होता है |  पावकोअपि सलिलायते धुना -हे तात ? यह जो पावक अर्थात अग्नि है वो भी हमें शीतल हवा की तरह प्रतीत सा होता है = अतः हे मित्र बन्धु गण -आप सब भी चिंतित न होकर परमात्मा की सरन को स्वकार कर लें ,उसमे ही  हम सबका कल्याण होगा  ||
भवदीय निवेअक -झा शास्त्री |

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