"विद्वान् लोग "लक्ष्मी "से अत्यधिक सरस्वती की पूजा करते हैं "
यद्यपि संसार की सारी सुन्दरता "लक्ष्मी "से ही प्राप्त होती है ,किन्तु विद्वान् लोग अपनी सुन्दरता का प्रतीक "माँ शारदे "को ही समझते हैं || "भगवान् आदि शंकराचार्य जी को भला कौन नहीं जानता है -सनातन धर्म की प्रक्रिया आपने कुछ इस प्रकार से प्रतिपादित किए?-चार क्षेत्र -वराहक्षेत्र,भृगुक्षेत्र,हरिहरक्षेत्र तथा कुरुक्षेत्र | चार मठ की भी आपने ही स्थपाना की |
मित्रबंधु गण - संसार में सर्वगुण संपन्न कोई नही होता है ,[सिवा परमात्मा के ] दीपक प्रकाश से युक्त होते हुए भी अपने नीचे अँधेरा को प्रकाश में परिवर्तन नहीं करपाता है -कारण यदि कोई भी व्यक्ति सभी गुणों से युक्त हो जायेगा तो एनी को सुख दने के वजय दुःख देगा-इसलिए विधाताने सभी को अलग -अलग गुण और अवगुण से विभूषित किया है ||
-भगवान् शंकराचार्य एकवार -भिक्षा मांगने किसी निर्धन के घर पहुच गए ,किन्तु [हमारे भारतियों की एक विशेषता है कि खाली हाथ किसी को अपने द्वार से जाने नहीं देते हैं ] उस व्यक्ति के पास देने को कुछ भी नहीं था ,तो वह सोचने लगा कि हम क्या दें ,हम तो स्वयं ही कई दिनों के भूखें हैं -भगवान् शंकराचार्य समझ गए फिर भी याचना की ,कि कुछ भी दे दो,वह व्यक्ति बोला कि हमारे घर में केवल सूखा आवला है -बोले वही दे दो ?
मित्र बन्धु गण जानते हैं -जब उस व्यक्ति ने सूखा आवला प्रदान किया| तो बदले क्या मिला -जी हाँ -वही आवला स्वर्ण में परिवर्तित हो गए | भगवान् शंकराचार्य ने "माँ लक्ष्मी "की स्तुति की -"अंगम हरे पुलक भूषण माँ स्र्यंती " कहने भाव यह है -भगवान् शंकराचार्यजी सक्षम थे ,फिर भी याचना करके जीवन क्यों व्यतीत करते थे | क्योंकि विद्वान् की शोभा विद्या ही है -अपने लिये तो सभी जीते हैं ,कभी दूसरों के लिये भी जीकर देखें | अपने गुण का सदुपयोग करें |
भवदीय निवेदक "jha shastri"
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भवदीय निवेदक "ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री "{मेरठ उत्तर प्रदेश }
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--प्रश्न का उत्तर जानने से पहले हमें कुछ भारतीय -ज्योतिर गणित {कालगणना }के सन्दर्भ में जानना होगा | -----सूर्योपनिषद में तो सूर्य को समस्त ...
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शनिवार, 11 दिसंबर 2010
"विद्वान् लोग "लक्ष्मी "से अत्यधिक सरस्वती की पूजा करते हैं "
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