भवदीय निवेदक "ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री "{मेरठ उत्तर प्रदेश }

"झा शास्त्री "मेरठ {उत्तर प्रदेश }

सोमवार, 13 दिसंबर 2010

"हमलोग भी तो माला बन सकते हैं ?"

"हमलोग भी तो माला बन सकते हैं ?"
मित्र बन्धु गण , कभी -कभी करीब होकर भी सही जानकारी नहीं हो पाती है
प्रायः माला सभी धारण करते हैं ,किन्तु "माला के बीच में सुमेरु होता है ,यह दीखता भी है ,किन्तु हमलोग यह नहीं जानते हैं ,कि आखिर यह बीच में क्यों होता है  || 
सहपाठी गण -एकवार  "मंदराचल पर्वत "  को आसमान को छूने की उत्कंठा जागी,और छू भी लिया ,संयोग से "सुमेरु पर्वत को भी पता चली ,की इस संसार में   "मंदराचल पर्वत "सबसे बड़ा पर्वत है -तो भला "सुमेरु" भी रुकने वाला नहीं था , "सुमेरु पर्वत "ने अपनी उचाई  इतनी कर ली की ,भगवान भाष्कर का प्रकाश भूलोक पर नहीं आने दिया | इससे संसार के समस्त जीव त्रस्त हो गए , इसका समाधान क्या हो सकता है ,सभी खोजने लगे ,जानकारी मिली की -"सुमेरु पर्वत "अपने गुरु का बहुत ही सम्मान करते हैं ,तो क्यों न गुरु के पास ही चलें ,"गुरु अगस्त ऋषि " के पास सभी जीवों ने अनुनय विनय की -गरूजी ने-सभी के कल्याण हेतु -अपने शिष्य के पास गए -शिष्य गुरु को देखते ही नतमस्तक हुआ ,और गुरूजी ने यह वचन दिया कि हम जबतक वापस न आयें  आप नतमस्तक ही रहें ? तबसे आजतक माला के आगे सुमेरु लटका अर्थात झुका ही रहता है |
"माला "सभी पहनते हैं -चाहे ओ स्वर्ण की हो , या  नवरत्न की,पुष्प की या हीरे की सभी में "सुमेरु होता है ,किन्तु हमलोग जानने की कोशिश नहीं करते हैं ||
भाव -मित्र बन्धु गण -समय इतना बदल गया है कि,हम अपने माता पिता और गुरु की बातों को यूँ ही नकार देते हैं ,फिर हमलोगों की गलतियों को किस प्रकार से सुधार जा सकता  है -हमलोग तो धन के सिवा किसी को भाव ही नहीं देते हैं -जरुरत है -अपने जीवन को सही रूप से जीने की ,और यह तभी संभव हो सकता है ,जब हम सभी का आदर करेंगें ,अपनी मानबता को समझेंगें |
निवेदक -ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री"
समय सारिणी -रात्रि ८ से ९ नेट सेवा -ऑरकुट ,फसबूक ,इबीबो ,तथा जीमेल पर एक साथ [निःशुल्क एवं निःसंकोच ] संपर्क सूत्र -०९८९७७०१६३६.०९३५८८८५६१६,मेरठ ||| 
 

कोई टिप्पणी नहीं: