भवदीय निवेदक "ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री "{मेरठ उत्तर प्रदेश }

"झा शास्त्री "मेरठ {उत्तर प्रदेश }

बुधवार, 15 दिसंबर 2010

"हमारी पीड़ा ,असहनीय है ?"

"हमारी पीड़ा ,असहनीय है ?"
यह "मेदिनी " किसकी है ,भगवान् की | इसका उपयोग कौन करता है ,हमलोग |जी हाँ ! जिस "वसुधा "पर अवतरित होने के लिये -यक्ष ,किन्नर ,देव दानव यानि सभी लालायित रहते हैं ,उस "मेदिनी " राजा मानव है ,किन्तु मानव का जीवन असहनीय सा प्रतीत होता है ||
मित्र बन्धुगण, कभी पूरा काल में मानव -मानव को देखकर हर्षित होता था ,किन्तु समप्रति -एक दुसरे को देखर भय सा लगने लगता है | बाबा तुलसीदास जी के शब्दों को पढ़कर तो यही लगता है -बड़े भाग्य मानस्तन पाबा" जब हम बहुत पुन्य अर्जित करते हैं ,तो हमें मानव रूपी तन प्राप्त होता है || संसार के जितने भी जीव हैं उनमें मनुष्य को ही निपुण बनाया है विधि ने-उस मनुष्य का स्थान निम्न सा लगने लगा है |-सभी जीवों का आश्रय -मानव ही होता है ,सबके हित की बात यही सोचता है ,क्योंकि ज्ञान के साथ -साथ विवेकवान भी यही होता है ,जो मानव विवेक हीन होजाता है -उसको पशुता की उपाधि से विभूषित करता है समाज ,किन्तु आज हम-पशुओं पर यकीन करते हैं ,परन्तु मानवों पर नहीं ?
भावार्थ -सहपाठी गण -आज हमलोग अपनी विस्वसनीयता खो रहे हैं ,इसलिए हमारी जगह पशु और पशु की जगह हमारी गणना होती  जा रही है , जब कि आज हमलोग शिक्षित एवं संपन्न शील होते जा रहे हैं ,जरुरत है -हमलोग विवेकवान बनें ? 
      निवेदक -ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री 
निःशुल्क ज्योतिष प्रत्यक्ष सेवा 
रात्रि -८ से ९ इबीबो ऑरकुट ,फसबूक एवं जीमेल पर एक साथ ||

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