भवदीय निवेदक "ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री "{मेरठ उत्तर प्रदेश }

"झा शास्त्री "मेरठ {उत्तर प्रदेश }

शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

"धवल कीर्ति को हम ही खो रहे हैं ?"

       "धवल कीर्ति को हम ही खो रहे हैं ?"
=ब्रह्म्नानाम शरीरेशु ,तिष्ठन्ति सर्व देवता |
पादेशु सर्व तीर्थानि ,पुण्यानि पग धूलिशु || =जिस भूदेव का भार पृथ्वी सहन नहीं कर पाती है ,इतना बड़ा सम्मान परमात्मा ने ब्राह्मण को दिया ,उस धवल कीर्ति को हम कुछ यूँ ही कर्म विहीन होकर खो रहे हैं ||-पूरा काल में लोग गंगा स्नान नहीं कर पाते थे ,तो जब कोई भूदेव किसी के आंगन में आते थे तो सर्व प्रथम चरण का प्रक्षालन लोग करते थे ,क्यों कि-ब्राह्मण के शरीर में समस्त देवता निवास करते हैं ,इतना ही नहीं -भूदेव के चरण में माँ गंगा का निवास है चरण की धूलि में सारे पुन्य रहते हैं-तो यदि हम अपने आंगन में चरणों का प्रक्षालन करेंगें तो हमारे यहाँ  भी पुन्य का निवास हो जायेगा || भाव समय के साथ सबकुछ बदल गया है ,हम कर्म तो करते हैं किन्तु अपने लिये कम यजमान के लिय विशेष ,हमारे संस्कार तो होते हैं किन्तु हम ही नहीं पालन करते हैं-यह संस्कृत और संस्कृति तभी सत्य पथ पर चलेगी जब हम कर्मनिष्ठ होंगें ||
भवदीय निवेदक "झा शास्त्री " मेरठ [उत्तर प्रदेश ]
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