भवदीय निवेदक "ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री "{मेरठ उत्तर प्रदेश }

"झा शास्त्री "मेरठ {उत्तर प्रदेश }

सोमवार, 17 जनवरी 2011

समता अल्प विषमता विशेष है "ज्योतिष" में !"

          समता अल्प विषमता विशेष है "ज्योतिष" में !"
संस्कृत सभी भाषाओँ की जननी है, इसे देव भाषा भी कहते हैं ,यह सभी भाषाओँ में समाहित है ,किन्तु इसमें कोई दोष नहीं है ,भले ही परिवर्तन हो गया है ,समय काल बदल गया है ,हमने जीवकोपार्जन के निमित्त भले ही प्रयोग करते हों ,परन्तु अंश तो संस्कृत का ही है ,आज हम संस्कृत भाषा को नहीं जानते हैं - तो निश्चित है कि हम पढेंगें भी नहीं  यह अर्थकरी विद्या है,छे शस्त्र में "ज्योतिष "को नेत्र कहते हैं |-"ज्योतिष गणना की चीज तो है ही-किन्तु साधना की विशेष आवश्यकता पड़ती है,"ज्योतिष "की प्रथम शुरुआत -शिशुबोध या ज्योतिष सर्वसंग्रह से होतीहै ,-आगे चलकर -मुहूर्त चिंतामणि ,ताजीक नीलकंठी इत्यादि कई ग्रंथों का अध्ययन करना पड़ता है ,-जब हम इन ग्रंथों का अध्ययन करते हैं -तो स्वयं गुरु की कृपा से ,हमारे अन्दर जन कल्याण की शक्ति आती है || यद्यपि -हैं ये नवग्रह और द्वादश भाव फिर भी ,गणना "माँ सरस्वती "की कृपा के विना असंभव है |-ठीक उसी प्रकार से -सात स्वर से दश ठाठ और अनंत राग का निर्माण साधना से होता है ||नालंदा विश्व विद्यालय में सभी धार्मिक ग्रंथों को अंग्रेजों ने जलाया था ,किन्तु हमारे आचायों के एक ही बात कही थी - तुम ग्रंथों को जला सकते हो-हमारी जिह्वा  को नहीं ||-भाव था कि यदि हम शस्त्रों को याद करेंगें तो हमें-नक़ल  या किताब देखकर फलादेश नहीं करना पड़ेगा || भाव -मित्र प्रवर, जब हम संस्कृत रूपी नौका  पर सवार होकर पार करना चाहते हैं तो  हमारी वेश भूषा, और संस्कृत को आत्मसात भी तो हमें करना चाहिए || एकः शब्दः सुप्युक्तः सम्य्ग्यतः स्वर्गे लोके च काम धुग भवति -   जब हम संस्कृत और संस्कृति को आत्मसात करेंगें तो  यहाँ तो सुख मिलेगा ही स्वर्ग में भी मिलेगा ||
भवदीय निवेदक "झा शास्त्री" मेरठ [उत्तर प्रदेश ]
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