भवदीय निवेदक "ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री "{मेरठ उत्तर प्रदेश }

"झा शास्त्री "मेरठ {उत्तर प्रदेश }

शुक्रवार, 27 मई 2011

"राशि-यदि मिथुन या कन्या हो -तो जातक "शुक्र "जैसा होता हैं ?"

          "राशि"-यदि मिथुन या कन्या हो-तो जातक "बुध"जैसा होता हैं ?"
  मित्रप्रवर ,राम -राम |
          "सूर्य " के अति समीप रहने वाला गृह "बुध " ही है | सूर्य -के सानिध्य के कारण इसका प्रकाश प्रखर और प्रबल है ,किन्तु अपना अस्तित्व छिपाए रखता है |यह सबसे छोटा ग्रह है |सूर्य की प्रदक्षिणा में इसे केवल ८८ दिन लगते हैं | यह ग्रह वायु रहित ,सूर्योदय से पहले उदय होने वाला तथा सूर्यास्त के पश्चात् अस्त होने वाला है ||
         अस्तु -यह उत्तर दिशा का स्वामी है ,इसलिए जातक को उत्तर दिशा में ही लाभ होता है | नपुंसक तथा त्रिदोषकारी है | यह श्याम तथा हरे रंग वाला,बहुभाषी ,कृष शरीर,रजोगुणी ,पृथ्वी तत्व वाला ,शुद्रजाति का और स्पष्टवादी है | यह सुखकारक है |इससे जिह्वा ,कंठ ,तालु ,बुद्धि ,शिल्प विद्या और कला का विचार किया जाता है |यह प्रथमभाव को जब अपनी पूर्ण दृष्टि से देखता है ,तो जातक को व्यापार से असीम लाभ होता है किन्तु व्यक्ति को कुटुंब विरोधी ,स्वतंत्र -विचारक ,हठी और अभिमानी भी बनता है |उक्त फल यह दुसरे भाव को देखने पर भी देता है |तीसरे भाव को देखने पर व्यक्ति को अत्यंत भाग्यवान ,प्रवासी ,सत्संगी फल से ओतप्रोत करता है | चतुर्थ भाव में राज्य से लाभ ,भूमि ,वाहन -सुख ,प्रकांड पंडित और पांचवे भाव में गुणवान ,शिल्पकार ,छठे भाव में वात रोगी ,कुकर्मी शत्रु पीड़ित और जीवन के अंतिम दिनों में  धन इकठ्ठा करने वाला बनाता है |सातवे भाव में हो तो -व्यक्ति -शुशील पत्निवाला ,गणित विशेषग्य होता है |आठवे भाव में -व्याकुल ,प्रवासी ,परिवार विरोधी ,अपयश -भागी ,नवें भाव में-गायन प्रिय ,विलासी ,मात्री द्रोही,सुखभोगी,दसवें  में -कीर्तिमान ,एग्यराहवें में -विद्वान ,कला विशारद बनाता है |किन्तु जब बारहवें भाव पर अपनी दृष्टि डालता है ,तो जातक को अपंग,निर्धन ,बुद्धिहीन और दुसरे के धन का लोभी बना देता है ||
          भवदीय निवेदक "झा शास्त्री "मेरठ |
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