"आषाढ़ और श्रावण का मेल ,यन्त्र ,मंत्र एवं तंत्रों के होते हैं निराले खेल ?"
यूँ तो साल में चार नवरात्र होते हैं ,उत्तर भारत के लोग चैत्र एवं आश्विन का विशेष महत्त्व देते हैं ,एवं दक्षिण भारतीय आषाढ़ एवं माह का ,किन्तु -शास्त्र ,धर्म मर्यादा तो सबके लिए यथावत ही होते हैं -इसलिए पुराकाल से ही ही ये भिन्नता तो आ रही है परन्तु -बहुत से आस्थावान लोग इस विभेद को नहीं मानते हैं वो --"वसुधैव कुटुम्बकम" ,संसार के सभी जीवों अपने आपको ही देखते हैं ||
जब वर्षा ऋतू का आगमन होने वाला होता है तो सभी जीव अपने आपको शांत चित से एकाग्रचित हो जाते -और जब मन शांत हो जाता है -तो आने वाला जो समय होता है उसके लिए कुछ विशेष करते हैं | इस रितु में न तो अत्यधिक ताप न ही अत्यधिक शीत ,इस karan से tap एवं साधना करने में की dikkat नहीं होती है |इस समय का yagy पूजा dan सभी जीवों के iye shanti aananddayak होते हैं | इस समय के yagy एवं पूजा में रंग भी रक्त पीत या स्वेत नहीं होते हैं | संत लोग तो साधना में लीन रहते ही हैं -देव असुर भी शांत हो जाते हैं-"आषाढ़ के नवरात्र की पूजा तत्काल अपना अर्थात तृतीय मास के उपरांत ही फल देते हैं ये पूजा अति सूक्षम तो होती है किन्तु प्रभाव पुरे वर्ष का होता है |इस समय यन्त्र ,तंत्र एवं मत्रों की विशेष साधना नहीं करनी पड़ती है | जब हम पूजा को समाप्त करते हैं तो श्रावण का समागम होजाता है -जितने भी देव दानव यक्ष नाग किन्नर हैं सभी भगवान् शिव की उपासना करने लग जाते हैं -इस समय ,आत्म रक्षा की केवल जरुरत होती है इसलिए ,न शस्त्र न क्रोध ,न राग द्वेष केवल श्रावण में प्रेम की ही धारा वहती है, शास्त्र कहते हैं-"शिवं भूत्वा शिवम् जपेत" अर्थात सभी जीव परस्पर अपने -अपने कल्याण की सोचते हैं | संसार में जितने भी देव हैं उनमें शिव की प्रधानता शायद इसलिए ही है | इस श्रावण मास में जो दुसरे का अहित सोचते हैं उनका विनाश ही होता है अतः परमात्मा {शिव } से सबके कल्याण की ही कामना करनी चाहिए ||
आषाढ़ नवरात्र में -पीत एवं रक्त वस्त्र न धारण करें ,यन्त्र मंत्र एवं तंत्रों की यदि सही जानकारी न हो तो ,भगवान् के नामों का जाप करने चाहिए ,सात्विक भोजन ,एवं राग द्वेष का परित्याग कर केवल देवी के दर्शन हेतु किसी भी देवालय में रोज जाना चाहिए ,यदि नीम्बू और नारियल और प्रसाद देवी को अर्पण करें तो शीघ ही जीवन आनंदमय हो जायेगा केवल ३ महीने में ||
श्रावण -में शिव को यद् श्री गंगाजल से पुरे श्रावण अभिषेक करें तो समस्त वैभव की प्राप्ति होगी | विल्वपत्र यदि अर्पण करें तो -धन एवं धनु की उन्नति होगी ,दूध से पूजा करने पर आरोग्य मिलेगा ,शहद से पूजा करने पर -संतान की प्राप्ति होगी ,गन्ने का रस से पूजा करने पर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है {यद् रहे कभी भी शिव के ऊपर -तिल,तेल,सरसों,खीर,या पका हुआ अन्न न चढ़ाएं ,isse saphalta तो milti है किन्तु अपना ३ मास के उपरांत ही nash हो जाता है ||
bhavdiy "jha shastri "Meerut {उत्तर pradesh }
nihshulk jyotish seva ratri 8 se9 mitrabankar कोई भी prapt कर sakte हैं |
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