भवदीय निवेदक "ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री "{मेरठ उत्तर प्रदेश }

"झा शास्त्री "मेरठ {उत्तर प्रदेश }

रविवार, 11 सितंबर 2011

ज्ञान प्रवाह =" अन्नत पूजा?"

      ज्ञान प्रवाह =" अन्नत पूजा?"
 "अन्नत सर्व नागानामधिपः सर्वकामदः , सदा भूयात प्रसन्नोमें  यक्तानाम भयंकरः ||                      इस मंत्र से पूजा की जाती है -यह विष्णु  कृष्ण रूप हैं और  शेषनाग काल रूप में विद्यमान हैं | अतः  दोनों की सम्मिलित पूजा हो जाती है ||
                         कथा =एक बार महाराज "युधिष्ठिर "ने राजसूय यग्य किया | यग्य मंडप का निर्माण सुन्दर तो था ही अद्भुत भी था | उसमें स्थल में जल और जल में स्थल की भ्रान्ति होती थी |यग्य मंडप की शोभा निहारते --निहारते "दुर्योधन "एक जगह को स्थल समझकर कुंड में जा गिरा |"द्रोपदी "ने उसका उपहास उड़ाते हुए कहा कि  अंधे की संतान भी अंधी होती है |                                        यह बात उसके  ह्रदय में  बाण की तरह चुभ गयी  | कुछ दिनों बाद इसका बदला लेने के लिए पांडवों को हस्तिनापुर बुलाकर द्यूत क्रीडा में  छल से परास्त किया | परास्त होकर पांडवों को बारह वर्ष का वनवास भोगना पड़ा |  वन में  रहते हुए पांडवों को अनेक कष्टों को सहना पड़ा | एक दिन वन में युधिष्ठिर से मिलने भागवान "श्री कृष्ण" आये | युधिष्ठिर ने उनसे सब वृतान्त सुनाया और उसे दूर करने का उपाय पूछा | तब "कृष्ण" ने उन्हें भागवान "अनंत " का व्रत करने को कहा| इससे तुम्हारा खोया हुआ राज्य फिर प्राप्त हो जायेगा ||
                  श्री कृष्ण की आज्ञा मानकर युधिष्ठिर ने अनंत भागवान का व्रत किया,जिसके  प्रभाव से पांडवों को महाभारत युद्ध में विजय प्राप्त हुई ||
   प्रेषकः -"झा शास्त्री " {ज्योतिष परामर्श  -रात्रि ८ से९ } -०९८९७७०१६३६-09358885616

कोई टिप्पणी नहीं: