"प्रचार का अभिप्राय -प्रसार है न कि शर्मसार ?"
मित्रप्रवर ,राम राम ,नमस्कार ||
प्रचार का अर्थ प्रसार होता है ,किन्तु उसका प्रसार तभी संभव होता है ,जब अपने गुण {गुणबत्ता }के कारण लोगों के दिल में अपनी जगह बना लेता है ,किन्तु इसमें समय लगता है ,इसके लिए अपना परिश्रम ,लगन ,विस्वास ,धन के साथ -साथ उपर वाले एवं भाग्य की भी आवशयकता होती है | यदि इन तमाम बातों में से एक भी कम हो जय तो प्रचार नहीं -शर्मसार हो जाता है ||
कभी हमलोग सादगी जीवन बिताते थे -तो कारण अनभिज्ञता थी | आज हम अलौकिक जीवन जीते हैं -तो वजह प्रचार ही है |चाहे -परिधान हो ,अलंकरण की वस्तुएं हो ,या रोजमर्रा की चीजें ही क्यों न हो -प्रचार ने हमें -अपने में समेत लिया है ,हम चाहकर भी अपने जीवन में कटोती नहीं कर पाते हैं ||
=ज्योतिष एवं ज्योतिषी भी अपने आपको नहीं रोक पाए ,समय की धारा ने हमें भी अपनी और खीच ली | किन्तु यदि हम -ज्योतिष अर्थात- नेत्र ,नेत्र अर्थात -तेज ,अपने तेज ,अपनी शक्ति के बल पर लोगों के ह्रदय में जगह बना सकते हैं -इसके लिए कर्मठ होना पड़ेगा ,सहनशील भी बनना पड़ेगा ,तप और साधना के द्वरा अपनी डगर पर अडिग रहना पड़ेगा |तभी हम भी प्रचार का प्रसार करेंगें नहीं तो -शर्मसार ही करेंगें ||
यह ज्योतिष सेवा सदन -आपकी सेवा में तत्पर रहते हैं ,रात्रि ८ से ९ ऑनलाइन या सम्पर्कसूत्र द्वरा |
हम आने वाले सभी मित्रों का निस्वार्थ सेवा करेंगें ,सभी आगंतुक मित्रों का निष्पक्ष मदद करेंगें ,सही राह दिखाएंगें , हम भेद भाव रहित सेवा करते हैं करते रहेंगें ||
{१}-आप से जुड़कर ,आपके हित के लिए बताकर हमें प्रसन्नता होती है ,किन्तु आप के सहयोग के बिना हम अकेले यह सेवा नहीं कर पायेंगें ,इसलिए ऑनलाइन सेवा नहीं मिलने पर सम्पर्कसूत्र से सेवा लें, सबको सेवा मिलेगी ,देर हो सकती है ||
{२}-किन्तु -ज्योतिष की सेवा के लिए -ज्योतिष के प्रति आस्था ,विस्वास होने चाहिए ,अन्यथा सेवा न लें ,क्योंकि आप और हम -महर्षियों की जो अद्भुत देन है ,गुरुओं की जो साधना है -उस मार्ग को धन से नहीं विस्वास से ही प्राप्त कर सकते हैं ||
भवदीय निवेदक "झा शास्त्री {मेरठ -उत्तर प्रदेश }
सम्पर्कसूत्र -०९८९७७०१६३६,09358885616
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