"शनि की साढ़ेसाती विचार -कुंडली में आपके पैरों के प्रभाव ?"
--जिस राशि में शनि भ्रमण करता है उससे बारहवी और दूसरी राशि को भी त्रस्त {पीड़ित } करता है |तीन राशियों का भोगकाल साढ़ेसात वर्षों का होता है |शनि की साढ़ेसाती लगने से -१०० दिनों तक जातक के मुख पर प्रभाव रहता है --ये हानिकारक होता है |ऐसे ही ४०० दिनों तक दक्षिण भुजा पर शनि का प्रभाव रहता है --जो जातक को विजय दिलाता है | ६०० दिनों तक जातक के चरणों में शनि का प्रभाव रहता है -जो जातक को यत्र -तत्र भ्रमण कराता रहता है | ४०० दिनों तक वामभुजा के ऊपर शनि का प्रभाव रहता है -जो जातक को -दुःख प्रदान करता है | ५०० दिनों तक जातक के उदार पर शनि का प्रभाव रहता है -जो जातक को लाभ देता है | ३०० दिनों तक जातक के मस्तक पर शनि का प्रभाव रहता है-जो जातक को राज्य का लाभ दिलाता है | २०० दिनों तक जातक के नेत्रों पर शनि का प्रभाव रहता है -जो जातक को दुःख प्रदान करता है |२०० दिनों तक गुदा में प्रभाव रहता है शनि का -जो जातक को दुःख प्रदान करता है --इस प्रकार से २७०० दिनों तक शनि की साढ़ेसाती रहती है -जो समयानुसार -क्रम से जातक को लाभ या हानी देती है ||
----जातक के जन्म होते ही अभिभावक -अपने शिशु के पैर की कुंडली में प्रभाव देखते है --जब जातक जन्म लेता है -तो चंद्रमा की स्थिति से पैरों की जानकारी मिलती है -कुंडली के -१,६,११ भाव में चन्द्रमा हो तो -शिशु के स्वर्ण पैर होते हैं -प्रभाव -हानिकारक माना जाता है |२,५,९ भाव में चन्द्रमा होने से -रजत पैर माने जाते हैं -जो लाभदायक होते हैं |३,७,१० भाव में चन्द्रमा होने पर -ताम्बे के पैर होते हैं जो -उत्तम माने जाते हैं | ४,८,१२ भाव में चन्द्रमा होने पर -लोहे के पैर माने जाते हैं -जो हानिकारक होते हैं |
----"{लोहे धन विनाशः स्यान्सर्व सौखयम च }
---भवदीय -पंडित कन्हैयालाल " झा शास्त्री "
--जिस राशि में शनि भ्रमण करता है उससे बारहवी और दूसरी राशि को भी त्रस्त {पीड़ित } करता है |तीन राशियों का भोगकाल साढ़ेसात वर्षों का होता है |शनि की साढ़ेसाती लगने से -१०० दिनों तक जातक के मुख पर प्रभाव रहता है --ये हानिकारक होता है |ऐसे ही ४०० दिनों तक दक्षिण भुजा पर शनि का प्रभाव रहता है --जो जातक को विजय दिलाता है | ६०० दिनों तक जातक के चरणों में शनि का प्रभाव रहता है -जो जातक को यत्र -तत्र भ्रमण कराता रहता है | ४०० दिनों तक वामभुजा के ऊपर शनि का प्रभाव रहता है -जो जातक को -दुःख प्रदान करता है | ५०० दिनों तक जातक के उदार पर शनि का प्रभाव रहता है -जो जातक को लाभ देता है | ३०० दिनों तक जातक के मस्तक पर शनि का प्रभाव रहता है-जो जातक को राज्य का लाभ दिलाता है | २०० दिनों तक जातक के नेत्रों पर शनि का प्रभाव रहता है -जो जातक को दुःख प्रदान करता है |२०० दिनों तक गुदा में प्रभाव रहता है शनि का -जो जातक को दुःख प्रदान करता है --इस प्रकार से २७०० दिनों तक शनि की साढ़ेसाती रहती है -जो समयानुसार -क्रम से जातक को लाभ या हानी देती है ||
----जातक के जन्म होते ही अभिभावक -अपने शिशु के पैर की कुंडली में प्रभाव देखते है --जब जातक जन्म लेता है -तो चंद्रमा की स्थिति से पैरों की जानकारी मिलती है -कुंडली के -१,६,११ भाव में चन्द्रमा हो तो -शिशु के स्वर्ण पैर होते हैं -प्रभाव -हानिकारक माना जाता है |२,५,९ भाव में चन्द्रमा होने से -रजत पैर माने जाते हैं -जो लाभदायक होते हैं |३,७,१० भाव में चन्द्रमा होने पर -ताम्बे के पैर होते हैं जो -उत्तम माने जाते हैं | ४,८,१२ भाव में चन्द्रमा होने पर -लोहे के पैर माने जाते हैं -जो हानिकारक होते हैं |
----"{लोहे धन विनाशः स्यान्सर्व सौखयम च }
---भवदीय -पंडित कन्हैयालाल " झा शास्त्री "
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