"मैथिल और मिथिला "
आप किसी का भी अपमान करेंगें, तो दंड तो मिलेगा ही?-परन्तु " कुलपुरोहित का अपमान यदि हो तो ?-आइये कुछ प्रकाश डालते हैं -कभी अयोध्या से कोई राजा भरमन के लिए यहाँ आये ,और वो वहीं के हो गए | पहले राजा महराजा यज्ञ के द्वारा प्रजा का कल्याण करते थे | संयोग से उनके गुरु "वशिष्ठ" थे ,तो उन्होंने यग्य करने का निश्चय किया ,यह बात देबताओं के राजा "इन्द्र" को पत्ता लगा, और उन्होंने "वशिष्ठ जी " को स्वर्ग यग्य कराने के लिए आमंत्रित किया -उसी मुहूर्त में जिस मुहूर्त में "मिथिला में यग्य होने वाला था | वशिष्ठजी ने निमंत्रण स्वीकार कर लिये ,किन्तु आपको नहीं पता होगा -जब कोई व्यक्ति संकल्प ले लेता है तो [प्राण जय पर वचन न जाई] तो उन्होंने वहाँ के कुलगुरु "महर्षि विस्वामित्र जी को यग्य कराने का आमंत्रण दिया |यग्य शुरू भी हुआ .समाप्ति के दिन वशिष्ठजी वहाँ पधारे,जब राजा को यग्य करते देखा तो शाप दिया | हमारे महर्षि लोग, बड़े ही दयालु भी होते हैं -जब राजा ने क्षमा याचना की, तो आशीष मिला, कि तुम्हारे शरीर का मंथन से जीव उत्पन्न होगा -और राख का मंथन करने से जो हुए, उनका नाम =मिथी,विदेह कई नामों से विख्यात हुए | आज हम जिस मिथिला की गरिमा का व्याख्यान करते हैं, ये यही मिथिला है ,और हमलोग मैथिल हैं | आज यह मिथिला कुछ बिहार में और कुछ नेपाल में है जिस कारण से हम सभी लोगों की संस्कृति ,संस्कार ,भाषा रहन सहन प्रायः एक जैसा ही है | >आगे कल < निवेदक -झा शास्त्री मेरठ |
-एकबार सभी मित्रों को निःशुल्क ज्योतिष सेवा संपर्क सूत्र से मिलेगी । -आजीवन सदस्यता शुल्क -1100.rs,जिसकी आजीवन सम्पूर्ण जानकारी सेवा सदन के पास होगी ।। --सदस्यता शुल्क आजीवन {11.00- सौ रूपये केवल । --कन्हैयालाल शास्त्री मेरठ ।-खाता संख्या 20005973259-स्टेट बैंक {भारत }Lifetime membership fee is only five hundred {11.00}. - Kanhaiyalal Meerut Shastri. - Account Number 20005973259 - State Bank {India} Help line-09897701636 +09358885616
भवदीय निवेदक "ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री "{मेरठ उत्तर प्रदेश }
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"झा शास्त्री "मेरठ {उत्तर प्रदेश }
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शुक्रवार, 1 अक्टूबर 2010
"मैथिल और मिथिला "
प्रस्तुतकर्ता
ज्योतिष सेवा सदन { पंडित कन्हैयालाल झा शास्त्री "}{मेरठ }
पर
शुक्रवार, अक्टूबर 01, 2010
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"मैथिल और मिथिला "
आप किसी का भी अपमान करेंगें, तो दंड तो मिलेगा ही?-परन्तु " कुलपुरोहित का अपमान यदि हो तो ?-आइये कुछ प्रकाश डालते हैं -कभी अयोध्या से कोई राजा भरमन के लिए यहाँ आये ,और वो वहीं के हो गए | पहले राजा महराजा यज्ञ के द्वारा प्रजा का कल्याण करते थे | संयोग से उनके गुरु "वशिष्ठ" थे ,तो उन्होंने यग्य करने का निश्चय किया ,यह बात देबताओं के राजा "इन्द्र" को पत्ता लगा, और उन्होंने "वशिष्ठ जी " को स्वर्ग यग्य कराने के लिए आमंत्रित किया -उसी मुहूर्त में जिस मुहूर्त में "मिथिला में यग्य होने वाला था | वशिष्ठजी ने निमंत्रण स्वीकार कर लिये ,किन्तु आपको नहीं पता होगा -जब कोई व्यक्ति संकल्प ले लेता है तो [प्राण जय पर वचन न जाई] तो उन्होंने वहाँ के कुलगुरु "महर्षि विस्वामित्र जी को यग्य कराने का आमंत्रण दिया |यग्य शुरू भी हुआ .समाप्ति के दिन वशिष्ठजी वहाँ पधारे,जब राजा को यग्य करते देखा तो शाप दिया | हमारे महर्षि लोग, बड़े ही दयालु भी होते हैं -जब राजा ने क्षमा याचना की, तो आशीष मिला, कि तुम्हारे शरीर का मंथन से जीव उत्पन्न होगा -और राख का मंथन करने से जो हुए, उनका नाम =मिथी,विदेह कई नामों से विख्यात हुए | आज हम जिस मिथिला की गरिमा का व्याख्यान करते हैं, ये यही मिथिला है ,और हमलोग मैथिल हैं | आज यह मिथिला कुछ बिहार में और कुछ नेपाल में है जिस कारण से हम सभी लोगों की संस्कृति ,संस्कार ,भाषा रहन सहन प्रायः एक जैसा ही है | >आगे कल < निवेदक -झा शास्त्री मेरठ |
bahut accha aap ki kahini se sikh bhi milti hai aur utsah bhi ki hum maithil hain
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