भवदीय निवेदक "ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री "{मेरठ उत्तर प्रदेश }

"झा शास्त्री "मेरठ {उत्तर प्रदेश }

शुक्रवार, 1 अक्टूबर 2010

"मैथिल और मिथिला "

                    "मैथिल और मिथिला "
आप किसी का भी अपमान करेंगें, तो दंड तो मिलेगा ही?-परन्तु " कुलपुरोहित का अपमान यदि हो तो ?-आइये कुछ प्रकाश डालते हैं -कभी अयोध्या से कोई राजा भरमन के लिए यहाँ आये ,और वो वहीं के हो गए | पहले राजा महराजा यज्ञ के द्वारा प्रजा का कल्याण करते थे | संयोग से उनके गुरु "वशिष्ठ" थे ,तो उन्होंने यग्य करने का निश्चय किया ,यह बात देबताओं के राजा "इन्द्र" को पत्ता लगा, और उन्होंने "वशिष्ठ जी " को स्वर्ग यग्य कराने के लिए आमंत्रित किया -उसी मुहूर्त में जिस मुहूर्त में "मिथिला में यग्य होने वाला था | वशिष्ठजी ने निमंत्रण स्वीकार कर लिये ,किन्तु आपको नहीं पता होगा -जब कोई व्यक्ति संकल्प ले लेता है तो [प्राण जय पर वचन न जाई]  तो उन्होंने वहाँ के कुलगुरु "महर्षि विस्वामित्र जी को यग्य कराने का आमंत्रण दिया |यग्य शुरू भी हुआ .समाप्ति के दिन वशिष्ठजी वहाँ पधारे,जब राजा को यग्य करते देखा तो शाप दिया | हमारे महर्षि लोग, बड़े ही दयालु भी होते हैं -जब राजा ने क्षमा याचना की, तो आशीष मिला, कि तुम्हारे शरीर का मंथन से जीव उत्पन्न होगा -और राख का मंथन करने से जो हुए, उनका नाम =मिथी,विदेह   कई नामों से विख्यात हुए | आज हम जिस मिथिला की गरिमा का व्याख्यान  करते हैं, ये यही मिथिला है ,और हमलोग मैथिल हैं | आज यह मिथिला कुछ बिहार में और कुछ नेपाल में  है जिस कारण से हम सभी लोगों की संस्कृति ,संस्कार ,भाषा रहन सहन प्रायः एक जैसा ही है | >आगे कल < निवेदक -झा शास्त्री मेरठ |  

2 टिप्‍पणियां:

ज्योतिष सेवा सदन { पंडित कन्हैयालाल झा शास्त्री "}{मेरठ } ने कहा…

"मैथिल और मिथिला "

आप किसी का भी अपमान करेंगें, तो दंड तो मिलेगा ही?-परन्तु " कुलपुरोहित का अपमान यदि हो तो ?-आइये कुछ प्रकाश डालते हैं -कभी अयोध्या से कोई राजा भरमन के लिए यहाँ आये ,और वो वहीं के हो गए | पहले राजा महराजा यज्ञ के द्वारा प्रजा का कल्याण करते थे | संयोग से उनके गुरु "वशिष्ठ" थे ,तो उन्होंने यग्य करने का निश्चय किया ,यह बात देबताओं के राजा "इन्द्र" को पत्ता लगा, और उन्होंने "वशिष्ठ जी " को स्वर्ग यग्य कराने के लिए आमंत्रित किया -उसी मुहूर्त में जिस मुहूर्त में "मिथिला में यग्य होने वाला था | वशिष्ठजी ने निमंत्रण स्वीकार कर लिये ,किन्तु आपको नहीं पता होगा -जब कोई व्यक्ति संकल्प ले लेता है तो [प्राण जय पर वचन न जाई] तो उन्होंने वहाँ के कुलगुरु "महर्षि विस्वामित्र जी को यग्य कराने का आमंत्रण दिया |यग्य शुरू भी हुआ .समाप्ति के दिन वशिष्ठजी वहाँ पधारे,जब राजा को यग्य करते देखा तो शाप दिया | हमारे महर्षि लोग, बड़े ही दयालु भी होते हैं -जब राजा ने क्षमा याचना की, तो आशीष मिला, कि तुम्हारे शरीर का मंथन से जीव उत्पन्न होगा -और राख का मंथन करने से जो हुए, उनका नाम =मिथी,विदेह कई नामों से विख्यात हुए | आज हम जिस मिथिला की गरिमा का व्याख्यान करते हैं, ये यही मिथिला है ,और हमलोग मैथिल हैं | आज यह मिथिला कुछ बिहार में और कुछ नेपाल में है जिस कारण से हम सभी लोगों की संस्कृति ,संस्कार ,भाषा रहन सहन प्रायः एक जैसा ही है | >आगे कल < निवेदक -झा शास्त्री मेरठ |

Jaynti Charan Jha ने कहा…

bahut accha aap ki kahini se sikh bhi milti hai aur utsah bhi ki hum maithil hain