"संस्कृत साहित्य और महाकवि "भारवि "
संस्कृत साहित्य में बहुत से महा कवि हुए ,किन्तु कवि "भारवि भी महाकवि "कालिदास" के समतुल्य ही थे |
विशेषता -"भारवेअर्थगोरवं"-अर्थ की गोरवता के लिये आप जाने जाते हैं | -रचना -किरातार्जुनीय महाकाव्य है | आज हम माता पिता का सम्मान करते हैं या वो हमारे साथ चलने को मजबूर होते हैं ,कुछ प्रकाश डालने की कोशिश करते हैं |भारवि जी का सम्मान संसार के सभी लोग करते थे .किन्तु -पिता उनका अपमान ही किया करते थे | एक दिन "भारवि जी को क्रोध आया, और उन्होंने यह निश्चय कीये, कि आज हम अपने पिता की हत्या कर देंगें, न ये रहेंगें, और न ही हमारा अपमान ही होगा | संयोग से अश्त्र लेकर घर में छुप गये, कि जब पिताजी घर आयेंगें तो उनकी गर्दन उड़ा दूंगा | पिता जी आये, किन्तु आंगन में खड़े हुए ,उसी क्षण माँ ने प्रशन किया? कि अपना पुत्र इतना विद्वान है ,सभी उसका सम्मन करते हैं किन्तु आपही हैं,जो उसका अपमान करते हैं| -इसपर उन्होंने कहा कि -हे देवी ? हम जानते हैं कि हमारा पुत्र विद्वान है, परन्तु हम जान बुझकर उसका अपमान इसलिए करते हैं, कि वो और आगे बढे ,यदि हम भी सम्मान करने लगेंगें तो वो और आगे नहीं बढ़ पायेगा | जब यह बात "भरविजी ने सुनी, तो पिता के चरणों में गिर पड़े| क्षमा याचना की, और उनको दंड यह मिला कि -आप अपनी ससुराल में बकरी १४ साल तक चरायेंगें |इस दंड को स्वीकार किया ,और पत्नी के साथ बकरी चराते रहे ,और उन १४ साल में इस ग्रन्थ की रचना की -किरातार्जुनीय महाकाव्य " इसी ग्रन्थ की रचना से उनका भरण पोषण भी होता रहा ,आपलोगों को पत्ता होगा, कि धामिक जगह पर पहले शलोक लिखे जाते थे ,और सभी लोग पढ़कर उस पथ पर चलने की कोशिश भी करते थे | इस ग्रन्थ का पहला- शलोक था - "सहसा विदधीत न किरियाम".कोई कार्ज़ अनायास नहीं करना चाहिए| अर्थात बिचारकर करना चाहिए -क्योकि आपको पत्ता है भरविजी ने भी यही किया था| जिसका परिणाम उन्हें भोगना पड़ा |इस पुरे ग्रन्थ में हमें ये देखने को मिलता है, कि हम क्या करें ,और क्या न करें |भाव -जीवन में हमलोगों से बहुत से कार्ज़ इस प्रकार के हो जाते हैं ,जो नहीं होना चाहिए | अतः कभी समय मिले तो इस प्रकार के ग्रंथों का भी अध्ययन करना चाहिए | निवेदक -झा शास्त्री मेरठ |
-एकबार सभी मित्रों को निःशुल्क ज्योतिष सेवा संपर्क सूत्र से मिलेगी । -आजीवन सदस्यता शुल्क -1100.rs,जिसकी आजीवन सम्पूर्ण जानकारी सेवा सदन के पास होगी ।। --सदस्यता शुल्क आजीवन {11.00- सौ रूपये केवल । --कन्हैयालाल शास्त्री मेरठ ।-खाता संख्या 20005973259-स्टेट बैंक {भारत }Lifetime membership fee is only five hundred {11.00}. - Kanhaiyalal Meerut Shastri. - Account Number 20005973259 - State Bank {India} Help line-09897701636 +09358885616
भवदीय निवेदक "ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री "{मेरठ उत्तर प्रदेश }
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"कुम्भ राशि-के जातक के स्वभाव और प्रभाव ?" इस राशि वाले व्यक्ति का शरीर ऊँचा ,अवयव बडे,चेहरा सुन्दर ,प्रेम तरंगी ...
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"आयु तो निश्चित है,मनन करें, अष्टम भाव का ?" जीवों की आयु का निर्णय तो "व्रह्माजी " माँ के गर्भ में ही निर्धारित ...
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"अपनी -अपनी जन्म तिथियों के स्वाभाव और प्रभाव जानें ?" --ज्योतिष के दो प्रारूप हैं -गणित और फलित |-गणित को गणना के माध्यम से ...
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"देश -विदेश पाक्षिक ज्योतिष विचार -20-06 से 3-062012-तक ?" --मास में पांच मंगलवार का फल उत्तम नहीं है ---- "यत्र...
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---मकर एवं कुम्भ लग्न की कुंडली में यदि "कालसर्पयोग "हो तो --वैसे जातक खनिज ,पेट्रोलियम ,एसिड ,कोयला ,मेडिकल या केमिकल क्षेत्र मे...
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"पंचकों में क्या करें ? क्या नहीं करें?" --रत्नमाला ग्रन्थ के अनुसार -धनिष्ठा ,शतभिषा ,पूर्वाभाद्रपद,उत्तरा भाद्रपद और रेवती...
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--प्रश्न का उत्तर जानने से पहले हमें कुछ भारतीय -ज्योतिर गणित {कालगणना }के सन्दर्भ में जानना होगा | -----सूर्योपनिषद में तो सूर्य को समस्त ...
"झा शास्त्री "मेरठ {उत्तर प्रदेश }
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शनिवार, 2 अक्टूबर 2010
"संस्कृत साहित्य और महाकवि "भारवि "
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"संस्कृत साहित्य और महाकवि "भारवि "
संस्कृत साहित्य में बहुत से महा कवि हुए ,किन्तु कवि "भारवि भी महाकवि "कालिदास" के समतुल्य ही थे |
विशेषता -"भारवेअर्थगोरवं"-अर्थ की गोरवता के लिये आप जाने जाते हैं | -रचना -किरातार्जुनीय महाकाव्य है | आज हम माता पिता का सम्मान करते हैं या वो हमारे साथ चलने को मजबूर होते हैं ,कुछ प्रकाश डालने की कोशिश करते हैं |भारवि जी का सम्मान संसार के सभी लोग करते थे .किन्तु -पिता उनका अपमान ही किया करते थे | एक दिन "भारवि जी को क्रोध आया, और उन्होंने यह निश्चय कीये, कि आज हम अपने पिता की हत्या कर देंगें, न ये रहेंगें, और न ही हमारा अपमान ही होगा | संयोग से अश्त्र लेकर घर में छुप गये, कि जब पिताजी घर आयेंगें तो उनकी गर्दन उड़ा दूंगा | पिता जी आये, किन्तु आंगन में खड़े हुए ,उसी क्षण माँ ने प्रशन किया? कि अपना पुत्र इतना विद्वान है ,सभी उसका सम्मन करते हैं किन्तु आपही हैं,जो उसका अपमान करते हैं| -इसपर उन्होंने कहा कि -हे देवी ? हम जानते हैं कि हमारा पुत्र विद्वान है, परन्तु हम जान बुझकर उसका अपमान इसलिए करते हैं, कि वो और आगे बढे ,यदि हम भी सम्मान करने लगेंगें तो वो और आगे नहीं बढ़ पायेगा | जब यह बात "भरविजी ने सुनी, तो पिता के चरणों में गिर पड़े| क्षमा याचना की, और उनको दंड यह मिला कि -आप अपनी ससुराल में बकरी १४ साल तक चरायेंगें |इस दंड को स्वीकार किया ,और पत्नी के साथ बकरी चराते रहे ,और उन १४ साल में इस ग्रन्थ की रचना की -किरातार्जुनीय महाकाव्य " इसी ग्रन्थ की रचना से उनका भरण पोषण भी होता रहा ,आपलोगों को पत्ता होगा, कि धामिक जगह पर पहले शलोक लिखे जाते थे ,और सभी लोग पढ़कर उस पथ पर चलने की कोशिश भी करते थे | इस ग्रन्थ का पहला- शलोक था - "सहसा विदधीत न किरियाम".कोई कार्ज़ अनायास नहीं करना चाहिए| अर्थात बिचारकर करना चाहिए -क्योकि आपको पत्ता है भरविजी ने भी यही किया था| जिसका परिणाम उन्हें भोगना पड़ा |इस पुरे ग्रन्थ में हमें ये देखने को मिलता है, कि हम क्या करें ,और क्या न करें |भाव -जीवन में हमलोगों से बहुत से कार्ज़ इस प्रकार के हो जाते हैं ,जो नहीं होना चाहिए | अतः कभी समय मिले तो इस प्रकार के ग्रंथों का भी अध्ययन करना चाहिए | निवेदक -झा शास्त्री मेरठ |
बहुत अच्छी प्रेरणादायक पोस्ट|
हिन्दी ब्लॉग की दुनिया में आपका स्वागत है.. निवेदन है कि ऐसे ही शानदार पोस्ट लिखकर हिन्दी की सेवा करते रहिये. शब्द पुष्टिकरण(word verification) हटा लीजिये इससे पाठकों को काफी असुविधा होती है..
इस सुंदर से नए चिट्ठों के साथ हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
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