भवदीय निवेदक "ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री "{मेरठ उत्तर प्रदेश }

"झा शास्त्री "मेरठ {उत्तर प्रदेश }

शनिवार, 12 फ़रवरी 2011

"तेजोगोल -अर्थात ग्रह !"एक झलक ?"

       "तेजोगोल -अर्थात ग्रह !"एक झलक ?"
आकाश के स्थिर तेजोगोल को "तारे "एवं अस्थिर को भाव -सूर्य की परिक्रमा करने वाले "तेजोगोल "ग्रह कहते हैं ||
[१]-सूर्य ,चन्द्र ,मंगल ,बुध ,गुरु ,शुक्र ,शनि ,राहु,केतु || इनको ग्रह कहते हैं ||
-कहते हैं कि विधाता [ब्रह्मा ] के मन में जब चराचर जगत की रचना करने का विचार आया -तब सबसे पहले -उनके मन से चन्द्र [चंद्रमा ] एवं आकाश ,नयनों से -सूर्य ,आकाश से वायु,वायु से अग्नि ,ध्वनी ,स्पर्श ,रंग व गुण ,अग्नि से जल ,स्वाद इत्यादि ,जल से भूमि ,सुगंध ,स्पर्श ध्वनी इत्यादि || इसी क्रम से दो ग्रह और पाँच तत्व  निर्मित हुए | इसके पश्चात -अग्नि से मंगल ,भूमि से बुध ,जल से शुक्र ,वायु से शनि एवं आकाश से गुरु इसी प्रकार से पाँच ग्रहों को जन्म मिला ||
भारतीय ज्योतिष में जिन्हें "नक्षत्र या ग्रहों के नामों से हम लोग जानते हैं -उनमे एक नक्षत्र अर्थात सूर्य ,एक उपग्रह अर्थात चाँद ,पाँच ग्रह अर्थात -मंगल ,बुध ,गुरु ,शुक्र और शनि तथा दो अमूर्त अस्तित्व  -अर्थात राहु एवं केतु हैं || राहु एवं केतु के नाम से पुकारे जाने वाले ये अमूर्त स्थल वो स्थान है ,जहाँ सूर्य के चारो भाव एवं पृथ्वी का दीर्घवृत्त ,पृथ्वी के चहुँ ओर चंद्रमा  के दीर्घवृत को काटता है =जैसे एक घडी के छोरों की भांति दोनों दीर्घव्रीतों के ये दो संघर्ष स्थल सदैव एक दुसरे आमने सामने रहते हैं ,इसलिए परत्येक जन्मकुंडली में राहु एवं केतु परस्पर आमने सामने घर में स्थित रहते हैं ||
इसके आलावा भी पाश्चात्य देश के धुरंधर विद्वान संशोधकों ने -१८८७ में "हर्शल " १८४६ में "नेप्चून " नाम के ग्रहों  का शोध किया ,परन्तु प्राचीन भारतीय ज्योतिषीय गणना में इन ग्रहों को कोई स्थान प्राप्त नहीं है 
भाव -भारतीय ज्योतिष ने -पाँच ग्रह ,एक नक्षत्र ,एक उपग्रह ,और दो अमूर्त स्थलों "राहु -केतु " के अतिरिक्त  किसी भी आकाशीय पिंड को मान्यता नहीं दी है ||
भवदीय निवेदक "ज्योतिष सेवा सदन"झा शास्त्री"
निःशुल्क ज्योतिष सेवा रात्रि से ८ में आमने सामने प्राप्त कर सकते हैं ||
सम्पर्क सूत्र -०९८९७७०१६३६-9358885616



 

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