"शिशुओं के चरण ही भविष्य का दर्शन कराते हैं !"
यद्यपि बालक का रूप भगवान् सा प्रतीत होता है ,माँ की ममता और स्नेह का अलौकिक रूप होते हैं,यह भी सत्य है पुत्र चाहे कुपुत्र भले ही हो, फिर भी फिर भी माँ का आँचल यथाबत स्नेह प्रदान करता है,परन्तु यह संसार माया से आवेष्टित होने के नाते -जिज्ञासा तो भी उत्पन्न होती है साथ ही सभी अविभावकों को की , हमारी संतान का भाग्य कैसा है और शास्त्र को माया से पड़े होने के नाते -सत्य का प्रतिपादन करते हैं -जो सत्य है ,जो सबके लिये समतुल्य है ,जो निरंतर अपना एक सा ही रूप दिखाते हैं-जी हाँ प्रीय मित्रबन्धु-हमारी संतान का भाग्य हम सब तमाम बात सत्य होने के वाद भी जाननेकी कोशिश करते हैं -आइये जब जातक भूमंडल पर अतरित होते हैं -तो हमें सर्व प्रथम चरणों [पाया ] के द्वारा ज्ञात होता है-
[१]-कुंडली के द्वादश भाव होते हैं -यदि -१,६,११-इन भवों में चंद्रमा हो तो [स्वर्ण पाद ] सोने के पैर होते हैं ,यह उत्तम नहीं माने जाते हैं ,दिक्कत -मन ,शत्रुता और आय को विगाड़ते हैं अभिभावकों के || निदान -तुला दान और स्वर्ण दान से लाभ होता है ||
[२]-कुंडली के -२,५,९ इन भावों में चन्द्रमा हों तो-चाँदी के पैर होते हैं-जो उत्तम होते हैं -लाभ -अभिभावकों को -धन ,शिक्षा या संतान ,एवं भाग्योदय के क्षेत्र में लाभ पहुंचाते होते हैं ||
[३]-कुंडली के -३,७,१० इन भावों में चंद्रमा हों तो -ताम्बे के पैर होते हैं -जो अति उत्तम माने जाते हैं -लाभ -अभिभावकों को -भाई बंधुओं से शत्रुओं से ,तथा कर्मक्षेत्र या पिता से लाभ पहुंचाते हैं ||
[४]-कुंडली के -४,८,१२ इन भावों में यदि चंद्रमा हों तो -लोह पाद अर्थात लोहे के पैर कहलाते हैं -ये उत्तम नहीं माने जाते हैं -हानी -माता ,संपत्ति ,आयू ,खर्च इन सभी बातों की हानी होती है अभिभावकों को || निदान -मामा के द्वारा -तुलादान,या उत्पन्न जातकों के नक्षत्रों के जाप ,एवं तुला दान से हानी नहीं होती है ||
भाव -मित्र प्रवर -ज्योतिष गणित एवं फलित के द्वारा हमें आने वाली घटित घटना की जानकारी मिलती हैं -जो उपाय के माध्यम से कठिन से कठिन मार्ग को हम कर्म के द्वारा सरल बना सकते हैं |\
भवदीय निवेदक "झा शास्त्री" मेरठ ,मुम्बे ,झंझारपुर ||
निःशुल्क ज्योतिष सेवा रात्रि ८ से ९ प्राप्त करें ,विशेष सहायता के लिये संपर्क सूत्र का प्रयोग करें ||09897701636
यद्यपि बालक का रूप भगवान् सा प्रतीत होता है ,माँ की ममता और स्नेह का अलौकिक रूप होते हैं,यह भी सत्य है पुत्र चाहे कुपुत्र भले ही हो, फिर भी फिर भी माँ का आँचल यथाबत स्नेह प्रदान करता है,परन्तु यह संसार माया से आवेष्टित होने के नाते -जिज्ञासा तो भी उत्पन्न होती है साथ ही सभी अविभावकों को की , हमारी संतान का भाग्य कैसा है और शास्त्र को माया से पड़े होने के नाते -सत्य का प्रतिपादन करते हैं -जो सत्य है ,जो सबके लिये समतुल्य है ,जो निरंतर अपना एक सा ही रूप दिखाते हैं-जी हाँ प्रीय मित्रबन्धु-हमारी संतान का भाग्य हम सब तमाम बात सत्य होने के वाद भी जाननेकी कोशिश करते हैं -आइये जब जातक भूमंडल पर अतरित होते हैं -तो हमें सर्व प्रथम चरणों [पाया ] के द्वारा ज्ञात होता है-
[१]-कुंडली के द्वादश भाव होते हैं -यदि -१,६,११-इन भवों में चंद्रमा हो तो [स्वर्ण पाद ] सोने के पैर होते हैं ,यह उत्तम नहीं माने जाते हैं ,दिक्कत -मन ,शत्रुता और आय को विगाड़ते हैं अभिभावकों के || निदान -तुला दान और स्वर्ण दान से लाभ होता है ||
[२]-कुंडली के -२,५,९ इन भावों में चन्द्रमा हों तो-चाँदी के पैर होते हैं-जो उत्तम होते हैं -लाभ -अभिभावकों को -धन ,शिक्षा या संतान ,एवं भाग्योदय के क्षेत्र में लाभ पहुंचाते होते हैं ||
[३]-कुंडली के -३,७,१० इन भावों में चंद्रमा हों तो -ताम्बे के पैर होते हैं -जो अति उत्तम माने जाते हैं -लाभ -अभिभावकों को -भाई बंधुओं से शत्रुओं से ,तथा कर्मक्षेत्र या पिता से लाभ पहुंचाते हैं ||
[४]-कुंडली के -४,८,१२ इन भावों में यदि चंद्रमा हों तो -लोह पाद अर्थात लोहे के पैर कहलाते हैं -ये उत्तम नहीं माने जाते हैं -हानी -माता ,संपत्ति ,आयू ,खर्च इन सभी बातों की हानी होती है अभिभावकों को || निदान -मामा के द्वारा -तुलादान,या उत्पन्न जातकों के नक्षत्रों के जाप ,एवं तुला दान से हानी नहीं होती है ||
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