"संवत्सर अर्थात सन -को जानने की कोशिश करते हैं !!"
"ज्योतिष "ग्रन्थों के अनुसार कार्तिक शुक्ल नवमी को कृतयुग का आरम्भ हुआ है | वैशाख शुक्ल तृतीया को त्रेतायुग की प्रसूति | माघ कृष्ण अमावस्या को द्वापर का सूत्रपात और भाद्र कृष्ण त्रयोदशी को कलियुग का प्रादुर्भाव माना जाता है |
शब्द मीमांसाशास्त्र के अनुसार -संवत्सर -शब्द को युग शब्द का ही पर्यायवाची शब्द अंगीकार किया है ||
संवत्सर -के विषय में एक मुख्य बात यह भी है कि उत्तर भारत में प्रायः चैत्र शक्ल [१] प्रतिपदा से विक्रम संवत्सर का प्रारंभ मानते हैं ,किन्तु गुजरात -महाराष्ट आदि दक्षिण -पश्चिमी प्रान्तों में में भी कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से विक्रम संवत्सर का प्रारंभ मानते हैं ||
तैतरीय ब्राह्मण - में लिखा है -कि अग्नि संवत्सर है | आदित्य परिवत्सर है | चंद्रमा -इन्द्रावत्सर और वायु अनुवत्सर है | आधुनिक -प्रचलित संवत -शब्द संवत्सर शब्द का अपभंश है | सम +वस्ति +ऋतवः अर्थात अच्छी "ऋतू " जिसमे है ,उस काल के प्रमाण को संवत्सर कहते हैं ||
इसलिए जन्म कुंडली के प्रारंभ में संवत्सर लिखा जाता है -एक संवत्सर एक वर्ष का माना जाता है |संवत्सर ६० हैं |
भाव -जितने भी संवत्सर हैं उनका फलाफल -विकास ,हानी,सूर्य कि सशक्त गति और कला वैभव पर आधारित है |किस संवत्सर पर क्या मौलक और अचूक प्रभाव पड़ता है -उसका वर्णन हम आगे करेंगें |विश्व का कोई भी राष्ट ऐसा नहीं है-जिसकी धरती पर इस दिन नायक "सूर्य" ने हलचल न मचा दी हो ,एवं समयोचित लाभ न उठाया हो ,इसकी अभिअर्चना न की हो ,लाभ का यह सार्वभौमिक नक्षत्र हरेक स्थान पर श्रधा और परिनिष्ठा के साथ पूजा जाता है ||
भवदीय निवेदक "झा शास्त्री"
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