भवदीय निवेदक "ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री "{मेरठ उत्तर प्रदेश }

"झा शास्त्री "मेरठ {उत्तर प्रदेश }

गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

"ज्योतिष से पहले ऋतुओं को भी जाने ?"

         "ज्योतिष से पहले ऋतुओं को भी जाने ?"
मित्र प्रवर -राम राम ,नमस्कार ||
हमारी एक सोच यह है कि आप-हमारी वास्तविक जो रूप है -उसको पहचाने ,इसलिए हम लेखन के माध्यम से आप अक पहुचने की निरंतर कोशिश करते रहते हैं -आप माने या न माने-"सत्संगेना गुना दोषः "आप जिस -जिस के साथ रहेंगे तो उसके गुण और अवगुण आपमें समां जाते हैं -तो हम भी चाहते हैं -आप देश में रहें या विदेश में -आप मित्र भी -हमारी जो पूर्वजों की भाषा या संस्कृति है -ओ भी आप में रहे -आप मित्र निरंतर आगे बढ़ते रहें ||
           -"ऋतू " शब्द -युगवाची है | काल माषण गणना में इस शब्द का प्रयोग होता है |जिसको गति मित्र -[सूर्य ] देता है |अर्थात -प्रभापुंज -प्रभाकर ही ऋतुओं के जन्मदाता हैं |वेद ग्रंथों में-६ ऋतुओं के नामो का उल्लेख हैं |किसी समय ३और ५ ऋतू भी मानी जाती थी |इस काल में हेमंत और शिशिर दोनों को मिलाकर एक ही ऋतू मानते थे |
           ऋतुएं निम्न हैं -[१]-बसंत [२]-ग्रीष्म [३]-वर्षा [४] -शरद [५]हेमंत [६]-शिशिर- ऋतू होते हैं ||
सभी ऋतुओं में बसंत ऋतू को ही अधिक प्राथमिकता दी गयी है | वेदों में बसंत ऋतू को ऋतुओं का मुख कहा गया है ||
भवदीय निवेदक "झा शास्त्री" 
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