"प्रकृति और ज्योतिष ?विचार शास्त्रों के!"
जब हम कोई भी कार्ज करते हैं-तब उस कार्ज को पूर्ण करने के लिए हमें अत्यधिक मेहनत करनी पड़ती है,किन्तु जब उसका प्रतिफल हमें प्राप्त हो जाता है या उस कार्ज को हम पूर्ण कर लेते हैं तब हमें सफलता के आगे कठिनाई कुछ भी नहीं दिखती है || हमारे भी ज्योतिष्कार ,महर्षियों ने ,आचार्यों ने कितनी मेहनत की ,तप एवं साधना की-यह हमें भान भी नहीं है-जब हम बात ज्योतिष की करते हैं -तो निचोड़ तो लेना चाहते हैं -मूल भुत तत्व तक जाना नहीं चाहते हैं जिस कारण से -हमें सफलता उतनी नहीं मिल पाती है ||
इस आधार पर जिस प्रकृति में हम रहते हैं -आज हम उसको जानने की कोशिश करते हैं-
"जड़ -जंगम ही प्रकृति है | इसके नव द्रव्य हैं -[१]-पृथ्वी [२]-जल [३]-तेज [४]- वायु [५]-आकाश [६]-काल [७]-दिक् [८]-आत्मा [९]-और -मन ||
इन नव द्रव्यों में भी प्रथम चार -परमाणु रूप हैं -ये निराकार होते हुए भी -इन्द्रियगम्य हैं | ये अपने गुणों से पहचाने जाते हैं और जब इनके ऊपर दिनकर [सूर्य ] का प्रभाव पड़ता है ,तो शांत -अशांत,सुन्दर से असुंदर ,मधुर से विषम और जीवन से मरण में परिणत हो जाता है ||
भाव -वर्तमान भूत एवं भविष्य की जानने की तमन्ना तो सभी को होती है, किन्तु अपने इर्द गिर्द जो सच है ,उसको पहचानने की भी हमें कोशिश करनी चाहिए ||
भवदीय निवेदक -ज्योतिष सेवा सदन"झा शास्त्री" मेरठ [उ प ]
निःशुल्क "ज्योतिष "सेवा रात्रि ८ से९ में प्राप्त करें -आमने सामने [मित्रता से ]
संपर्कसूत्र -09358885616
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें