"ज्योतिष के द्वारा-[लोक ] की भी जानकारी मिलती है !"
अन्तरिक्ष और पृथ्वी जगत के तीन भाग माने गए हैं| वेदों में इस बात का स्पष्ट निर्देश है कि-मेघ ,विद्युत् तथा नक्षत्रों का आक्रमण -प्रदेश पृथ्वी से बहुत दूर है | इसी आधार पर पौराणिक ग्रंथों में जगत [संसार ] को लोक की संज्ञा गई है |उनमें वर्णित लोक निम्न हैं -
[१]-भूलोक ---------- [२]-भुवर्लोक
३]- मह्लोक -----------[४]-जनलोक
[५]-सत्यलोक -----------[६]-तपलोक
[७]-स्वर्गलोक ---
स्वर्ग ,मृत्यु [पृथ्वी ] और पतालात्मक विभाग वेदों में नहीं मिलते |पुरातन -ऋषि मुनियों ने ये लोक ऊपर के माने हैं | उनकी दृष्टि में नीचे के ७लोक भी इस प्रकार से हैं --
[१]-तल ------------[२]-अतल
[३] -सुतल ------------[४]-वितल
[५]-तलातल -------------[६]-रसातल
[७]-पटल
भाव -मित्र्प्रवर -ज्योतिष प्रमाणित ग्रन्थ है और कर्मकांड के पूरक भी -संसार रूपी भवसागर से पार होने के लिए एवं अनुशाशन विहीन सामाजिकता नहीं अपनाये इसलिए इनका प्रतिपादन किया गया -आप और हम नहीं चाहते हुए भी -जुड़े रहते हैं -नहीं मानने के वाद भी -मानते हैं -यही ज्योतिष एवं कर्मकांड का सत्य है ||
भवदीय निवेदक "झा शास्त्री मेरठ [उ ० प ० ]
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