भवदीय निवेदक "ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री "{मेरठ उत्तर प्रदेश }

"झा शास्त्री "मेरठ {उत्तर प्रदेश }

मंगलवार, 8 मार्च 2011

"सूर्य का प्रभाव ,अनुभव ज्योतिष का ?"

   "सूर्य का प्रभाव ,अनुभव ज्योतिष का ?"
मित्र्प्रवर ,राम राम,नमस्कार ||
कोई भी लोक अथवा धरातल हो ,पृथ्वी के ऊपर हो या नीचे ,सब स्थानों पर सूर्य -रश्मियों  का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है | ये सूर्य रश्मियाँ -रूप, रस,रंग माधुरी एवं आकर्षण की विधायित्री ही नहीं ,अपितु जीवन परिपेक्ष  में मानव को प्राणदायक विभूतियाँ भी प्रदान करती हैं |खनिज और धातु पदार्थों का निर्माण भी मार्तंड और विभाबसू  सूर्य की क्षमा नमक रश्मि [किरण ] से संस्पर्श से होता है | बिटामिन "डी "की कमी से होने वाले रोग सूर्य रश्मियों में स्नान करने से पास नहीं फटकते |
       निर्माण और संहारकारी गैस भी उत्पन्न करने वाली पूषण नामक सूर्य की किरणे ही हैं,जो अणु -आयुध रूप में विनाशकारी  महाभायावः संत्रास और विस्फोटन की महती बलबती शक्तियां बनी हुई हैं | तेज और आकाश हमें सूर्य से ही प्राप्त होते हैं | यदि सूर्य न निकले ,तो प्रकाश भी आविर्भूत न हो | सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में अन्धकार व्याप्त रहे | सूर्य का जगत  के नेत्र हैं |वायु की निष्पत्ति भी सूर्य ही हैं |सूर्य की कलाएं ही वायु को गति देती है ||
       सूर्य अग्निपुंज है | उसकी तीव्रता जब तिग्वान्सू बन जाती है तो उसमें शक्ति का उद्भव होता है और वह फैलती है ,विस्तार और प्रसार के लिये मचलती है,उस समय अव्यवस्था बड़ी विकट और भयावह होती है| उसके इस उग्र रूप को बबंडर,वात्यचक्र और प्रलयंकरका नाम दिया जाता है |सूक्षम गति में भी इसका प्रवेश है और स्थूल रूप में भी ! कोई गुण ,तत्व और पदार्थ ऐसा नहीं है जहाँ इसका अंग समविष्ट न हो ||
भाव -सभी ग्रहों में सूर्य को राजा कहा गया है-इसलिए ज्योतिष की गणना भी -सूर्य, चंद्रमा में आधार पर ही होती है ||
भवदीय निवेदक "झा शास्त्री " मेरठ [उ ० प 0]
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1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

क्या हुआ पंडित जी , अपने मेरी टिप्पणी का कोई जवाब नहीं दिया ?

आलोचना बुरी लग गयी ?