"ज्योतिष का आधार "सूर्य और काल"?
काल और महाकाल में महान अंतर होता है| काल शब्द समयावाची है|सूर्य और पृथ्वी के पारस्परिक दिन सम्बन्ध का बोध जिससे होता है ,उसे "समय "या "काल "कहते हैं | किन्तु महाकाल की सत्ता इससे भिन्न है -उसमें उत्पत्ति ,स्थिति और ले ,इन तीनों क्रमिक अवस्थाओं का आंकलन होता है |
महर्षियों ने काल को मुख्यतः पांच भागो में विभाजित किया है -जो निम्न हैं -
[१]-वर्ष ,[२]-मास [३]-दिन [४]-लग्न [५]-मुहूर्त ||
भचक्र में भ्रमण करता हुआ "सूर्य" जब एक चक्र पूरा कर लेता है ,तो उसे वर्ष की संज्ञा दी जाती है |ऋग्वेद में -वर्ष के वाचक शरद और हेमंत शब्द आये हैं ,वहां इन शब्दों का अर्थ ऋतू न मानकर -सम्बत्सर बताया गया है |
गोपथ ब्राह्मण में-वर्ष के लिए "हायन "शब्द आया है | बाजसनेयी संहिता में -वर्षके लिए "समा " शब्द व्यव्ह्रीत हुआ है | ऋग्वेद के -दसवें मंडल में "समानाम मास आकृतिः" इस मन्त्र में समा शब्द के द्वारा ही वर्ष शब्द का प्रतिपादन किया गया है |
वर्ष या संवत्सर की व्युत्पत्ति करते हुए 'शतपथ ब्राह्मण" में -लिखा है -[ऋतुभिःसंवत्सरः शक्पनोती स्थातुम ] अर्थात जिसमें ऋतुएं वास करतीहैं ,वह वर्ष या संवत्सर -कहलाता है |-वर्ष को निम्न दो भागों में विभाजित किया गया है -[१]-सौर वर्ष [२]-चान्द्र वर्ष |
[१]--सौर वर्ष -पृथ्वी को सूर्य की एक परिक्रमा करने के लिए -३६५ दिन १५ घंटे और ११ मिनट का जो समय लगता है ,उसे सौर वर्ष कहते हैं ||
[२]-चान्द्र वर्ष -चंद्रमा को पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए ३५४दिन का जो समय लगता है -उसे चान्द्र वर्ष कहते हैं ||
=मास -ज्योतिषाचार्यों के मत से "मास ' शब्द फारसी भाषा का "माह "शब्द से बना है |फारसी भाषा में -सकार हकार में बदल जाता है -जैसे मास का माह रह गया -जिसका अर्थ चंद्रमा होता है |-हिंदी भाष का महीना शब्द भी इसी फारसी -माह शब्द से माहिना तथा महीना बना है |संभवतः -आंग्लभाषा[अंग्रेजी ] का -मूल शब्द जिसका अर्थ चंद्रमा होता है ,वो भी मून शब्द से विगड़ कर मूंथअथवा मंथ शब्द बना हो ,जिसका अर्थ भी महीना है |------भारतीय संस्कृति के अनुसार -निम्न तीन प्रकार का वर्गीकरण है -
[१]नक्षत्रों के आधार पर चान्द्र मास ,
[२]-संक्रांतियों के आधार पर सौर्ष मास ,
[३]-ऋतुओं के आधार पर आर्तव मास |
भाव -वेदों में मासों के नाम -ऋतु परक सिद्ध किये गए हैं,कुछ आर्ष -ग्रंथों में नक्षत्रों की संज्ञा ग्रहण की है| वेदों का मत स्पष्ट नहीं है ,भ्रान्ति मूलक है | आचार्यों का अभिमत है -क़ि हिन्दू मासों का नाम -नक्षत्रों के नाम पर ही रखे गए हैं इसी कथन में औचित्य है ||
भवदीय निवेदक "झा शास्त्री
निःशुल्क ज्योतिष सेवा रात्रि ८ से९ प्राप्त करें ||
सम्पर्कसूत्र -09897701636
काल और महाकाल में महान अंतर होता है| काल शब्द समयावाची है|सूर्य और पृथ्वी के पारस्परिक दिन सम्बन्ध का बोध जिससे होता है ,उसे "समय "या "काल "कहते हैं | किन्तु महाकाल की सत्ता इससे भिन्न है -उसमें उत्पत्ति ,स्थिति और ले ,इन तीनों क्रमिक अवस्थाओं का आंकलन होता है |
महर्षियों ने काल को मुख्यतः पांच भागो में विभाजित किया है -जो निम्न हैं -
[१]-वर्ष ,[२]-मास [३]-दिन [४]-लग्न [५]-मुहूर्त ||
भचक्र में भ्रमण करता हुआ "सूर्य" जब एक चक्र पूरा कर लेता है ,तो उसे वर्ष की संज्ञा दी जाती है |ऋग्वेद में -वर्ष के वाचक शरद और हेमंत शब्द आये हैं ,वहां इन शब्दों का अर्थ ऋतू न मानकर -सम्बत्सर बताया गया है |
गोपथ ब्राह्मण में-वर्ष के लिए "हायन "शब्द आया है | बाजसनेयी संहिता में -वर्षके लिए "समा " शब्द व्यव्ह्रीत हुआ है | ऋग्वेद के -दसवें मंडल में "समानाम मास आकृतिः" इस मन्त्र में समा शब्द के द्वारा ही वर्ष शब्द का प्रतिपादन किया गया है |
वर्ष या संवत्सर की व्युत्पत्ति करते हुए 'शतपथ ब्राह्मण" में -लिखा है -[ऋतुभिःसंवत्सरः शक्पनोती स्थातुम ] अर्थात जिसमें ऋतुएं वास करतीहैं ,वह वर्ष या संवत्सर -कहलाता है |-वर्ष को निम्न दो भागों में विभाजित किया गया है -[१]-सौर वर्ष [२]-चान्द्र वर्ष |
[१]--सौर वर्ष -पृथ्वी को सूर्य की एक परिक्रमा करने के लिए -३६५ दिन १५ घंटे और ११ मिनट का जो समय लगता है ,उसे सौर वर्ष कहते हैं ||
[२]-चान्द्र वर्ष -चंद्रमा को पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए ३५४दिन का जो समय लगता है -उसे चान्द्र वर्ष कहते हैं ||
=मास -ज्योतिषाचार्यों के मत से "मास ' शब्द फारसी भाषा का "माह "शब्द से बना है |फारसी भाषा में -सकार हकार में बदल जाता है -जैसे मास का माह रह गया -जिसका अर्थ चंद्रमा होता है |-हिंदी भाष का महीना शब्द भी इसी फारसी -माह शब्द से माहिना तथा महीना बना है |संभवतः -आंग्लभाषा[अंग्रेजी ] का -मूल शब्द जिसका अर्थ चंद्रमा होता है ,वो भी मून शब्द से विगड़ कर मूंथअथवा मंथ शब्द बना हो ,जिसका अर्थ भी महीना है |------भारतीय संस्कृति के अनुसार -निम्न तीन प्रकार का वर्गीकरण है -
[१]नक्षत्रों के आधार पर चान्द्र मास ,
[२]-संक्रांतियों के आधार पर सौर्ष मास ,
[३]-ऋतुओं के आधार पर आर्तव मास |
भाव -वेदों में मासों के नाम -ऋतु परक सिद्ध किये गए हैं,कुछ आर्ष -ग्रंथों में नक्षत्रों की संज्ञा ग्रहण की है| वेदों का मत स्पष्ट नहीं है ,भ्रान्ति मूलक है | आचार्यों का अभिमत है -क़ि हिन्दू मासों का नाम -नक्षत्रों के नाम पर ही रखे गए हैं इसी कथन में औचित्य है ||
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