भवदीय निवेदक "ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री "{मेरठ उत्तर प्रदेश }

"झा शास्त्री "मेरठ {उत्तर प्रदेश }

गुरुवार, 21 अप्रैल 2011

"कर्मकांड का प्रतीक है "गोदान " फिर भी हम हैं "नादान"?"

        "कर्मकांड का प्रतीक है "गोदान " फिर भी हम हैं "नादान"?"
मित्रप्रवर ,राम राम ,नमस्कार |
      सनातन धर्म का प्रतिपादन [समापन ] गोदान के बिना अधूरा मानते हैं -महर्षि "शांडिल्य ,भगवान् "मनु " दधीची ,वशिष्ठ ,विस्वामित्र ,अत्री ,गर्गाचार्य इत्यादि -कर्मकांड के प्रणेता जितने भी महर्षि हुए हैं ,या पुराण,वेद उपनिषद हैं सभी ने विहित कर्म की पूर्णता गोदान को ही माना है-फिर भी हम "गोदान की महिमा से अनभिग्य क्यों हैं ?या गाय का सम्मान क्यों नहीं करते हैं ||
        अस्तु -गाय की महिमा का व्याख्यान शास्त्रों और व्यवहारों से जानने की कोशिश करते हैं - गाय का सर्वांग[सम्पूर्ण शरीर शुद्ध है,किन्तु मुख को अशुद्ध माना गया है ,किन्तु विशेषता देखिये -जिस मुख से भले ही गाय कुछ भी खाती हो किन्तु उसका गोबर पवित्र है | गाय के शरीर में ५६ कोटि [करोड़ ] देवता निवास करते हैं | गाय का पंचगव्य ,दूध ,दही ,घी ,गोमूत्र एवं गोबर से हम अपने समस्त पापों को धो सकते हैं -प्रायश्चित करके | पंचगव्य का जहाँ -जहाँ छीटा पड़ेगा वो भूमि वास्तु दोष से मुक्त हो जाती है | हमारे शरीर के किसी भी भाग में निरंतर दर्द रहता हो तो -रुद्रष्टाध्याय के ६ अध्याय के ६ मन्त्र से कोई कर्मकांडी ब्रह्मण यदि कुशा से झारा लगा दे तो आपका दर्द सदा के लिए दूर हो जायेगा | यदि किसी को अत्यधिक पीड़ा हो ,मरणासन्न हो ,शारीरिक अवयव काम न कर रहे हों , देहांत  न होता हो-तो गोदान करा देने से पीड़ा से मुक्त हो जाता है साथ ही गोलोक को जाता है | जब प्रलय आती है -तब वेद ,ब्राह्मण ,पृथ्वी सभी गाय में समां जाते हैं | विवाह संस्कार हो और गोदान न हो तो यह संस्कार अधूरा ही रहता है | कोई यग्य हो -और गोदान न हो तो यग्य सफल नहीं होता है ||
         गाय के भी कई रूप हैं -श्यामा गाय को सर्वोतम माना गया है | नंदिनी गाय को अति उत्तम माना गया है | कामधेनु गाय को -लक्ष्मी रूप  माना गया है | सवत्सा गाय को [बछड़े वाली ] सर्वकल्याणकरक माना गया है | "रघुवंश महा काव्य के प्रणेता -महाकवि कालीदास ने-रधुवंश के दितीय सर्ग में -"राजा" दिलीप का वर्णन किया है -और राजा दिलीप ने -नंदिनी गाय की सेवा की अपने हाथों से -उसी नादिनी के आशीर्वाद से --राजा रघु ,अज इत्यादि हुए ,घर में कितना बड़ा वास्तु दोष क्यों न हो -गाय के निवाद से दोष मुक्त हो जाता है | जो पंच्बली नहीं करते हैं -अर्थात -पितरों को ,गाय को ,पक्षियों को ,अग्नि को ,देवताओं का नित सम्मान नहीं करते हैं -वो सुखी नहीं रह सकते हैं ,अतः पंचबली नित्य करनी चाहिए |प्रकृति ने सब के आहार की यथोचित व्यवस्था की है किन्तु हम उस परिभाषा को बदल रहे हैं -मनुष्य का भोजन अन्न है और जिसमें अन्न होते हैं उसीमें अन्न से पहले चारा होता है पशुओं के लिए, किन्तु हम प्रकृति के इस नियम को अपने स्वार्थ के लिए -बदल देते हैं पशुओं को चारा नहीं अन्न खिलाते हैं-क्यों कि जब पशु बलिष्ठ होंगें तो वजन बढेगा और जब वजन बढेगा तो मांस बढेगा दूध बढेगा -और तब मुद्रा बढ़ेगी ||
   जिस गाय के गोबर से हम प्रायश्चित करते हैं -जब गाय अन्न खाएगी तो गोबर मल युक्त हो जायेगा-तो हम पंचगव्य का पान नहीं कर पायेंगें या जिस गाय के दूध हमारे शिशुओं ,रोगियों के लिए प्राण दायक होते हैं वही-प्राण लने लायक बन जायेंगें ||
 भाव -जब हम सनातन धर्म को मानते हैं -तो हमें कुछ मौलिक बातों का अनुसरण भी करनी चाहए | इसलिए हमें गाय की रक्षा करनी चाहिए | गोशाला में दान देना चाहिए | गाय का आहार ग्रास ही होना चाहिए | हम गाय नहीं पल सकते हैं तो जिनके पास गाय हैं उनकी सेवा में सहयोग करना चाहिए |अपनी संस्कृति और संस्कारों की रक्षा के लिए गाय की सेवा में कदम बढ़ाना चाहिए| रूप से हम सनातनी तो हैं किन्तु कर्म से भी हमें सनातनी बनना चाहिए | यदि हमारी गायें सुरक्षित नहीं हैं-तो हम भी सुरक्षित नहीं हैं | भगवान् का  भजन, पूजन,दान,तपस्या ,यग्य के पूरक गाय ही है अतः हमें नादान नहीं निदान भी खोजना चाहिए | हमलोग -पाप धर्म जो भी करते हैं जीने के लिए ही तो करते हैं ,जब हमही न होंगें ,लोग ही न होंगें तो क्या होगा ||
     जिस प्रकार से हम अपनी आवश्यकता की पूर्ति करते हैं-किन्तु ये गाय की प्रसन्नता की ओर नहीं देखते हैं -ये हमारे लिए आने वाले भविष्य के लिए हानि करक है -आइये कदम -से कदम मिलाएं ,गाय की रक्षा का भार भी हम पर ही है अपनी गाय माता की रक्षा करने का संकल्प ले ||
भवदीय निवेदक " झा शास्त्री " मेरठ |
निःशुल्क ज्योतिष सेवा रात्रि ८ से९ ऑनलाइन या संपर्क सूत्र के दारा [केवल मित्रों के लिए ]
09897701636         
 

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