भवदीय निवेदक "ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री "{मेरठ उत्तर प्रदेश }

"झा शास्त्री "मेरठ {उत्तर प्रदेश }

मंगलवार, 26 अप्रैल 2011

"संक्षेप प्रारूप का पतन है ?"

         "संक्षेप प्रारूप का पतन है ?"
कभी -कभी हम आश्चर्य चकित हो जाते हैं | जब प्रारूप को बदल कर एक नया रूप देखने को मिलता है | इसे समय की आवश्यकता कहें या सुअवसर | समय की गति निरंतर अपने आपको यथावत रखी है| सूर्य -देदीप्यमान आभा रुपी प्रकाश से समझोता नहीं किया है |चाँद -अपनी कुमोदनी से मेदिनी को ,वनस्पतियों को .जीवों को अर्थात समस्त प्राणियों को आज भी समयानुसार ही चांदनी से आह्लादित करता हैं,किन्तु हमने अपना पथ बदल दिया है | जब चराचर जगत में -सूर्य ,चाँद ,पृथ्वी ,अग्नि ,वरुण ,वायु ने -निरंतर अपने कारज को निष्ठां से करते हैं तो हम -क्यों शुक्ष्म ,अल्प [कटोती ] की ओर आकर्षित होते हैं या अपनाते जाते हैं |
अस्तु -हमने ग्रंथों का अध्ययन करना छोड़ दिया है ,प्रश्नोत्तरी से ही सफलता की कामना करने लगे हैं ,इससे क्या होगा -प्रारूप ही बदल जायेगा,|कभी भगवान वेदव्यासजी ने-द्विजों को वेदाध्ययन  से रहित देखा तो -एक वेद को चार भागों में विभाजित किया -साम ,अथर्व,ऋग ,यजुर्वेद ,परन्तु हम इतने परिश्रमी कहाँ जो कंठस्त करते ,हमने यजुर्वेद संहिता -जिसमें ४० अध्याय २००० ऋचाएं जिन मन्त्रों से यग्य का संपादन होता है ,का भी रूप बदल दी -अपवाद को छोड़ दें तो -रुद्राष्टाध्यायी [रूद्री ] से ही कर्मकांड का संपादन करते हैं | १८ पुराण के निर्माण भी नीरस को सरस बनाने के लिए ही किये गए किन्तु -वो भी ,सप्तवारों की कथा या सत्यनारायण की कथा में ही सिमट गए | ६ शास्त्र भी छोटी -छोटी कथाओं में सिमट कर उपदेश मात्र रह गए | 
       भाव -जब हम बात तो शास्त्रों की करते हैं , फल की भी कामना पूर्व की अपेक्षा आज विशेष करते हैं ,एक दुसरे पर छीटा कसी करते हैं, यथावत फल नहीं मिलने पर दोष भी अपने आपको ही देते हैं -तो फिर इस सत्य से विमुख क्यों होते हैं -कि हमें अपने धरोहर की रक्षा के लिए  ,अपने पूर्वजों द्वारा प्राप्त आशीर्वाद या ग्रन्थ या नियमाबली को -और भी मजबूत बनायें -क्योंकि -धर्मो रक्षति रक्षतः -यदि हम धर्म की रक्षा करेंगें,हम धर्म के प्रति सजग होंगें ,हम समाज ,देश ,विदेश,सभी के प्रति हित की कामना करेंगें-तो ही हमारा हित होगा अन्यथा -हम अपने साथ -साथ सभी को पतन की ओर ही ले जायेंगें | 
  भवदीय निवेदक "झा शास्त्री "मेरठ |
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