भवदीय निवेदक "ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री "{मेरठ उत्तर प्रदेश }

"झा शास्त्री "मेरठ {उत्तर प्रदेश }

बुधवार, 27 अप्रैल 2011

"आस्था या पराकाष्ठा "

            "आस्था या पराकाष्ठा "
मित्रप्रवर ,राम -राम,नमस्कार ||
       आप मित्रों के विचार से तो हम अवगत नहीं हैं ,किन्तु हमारी एक सोच है |यद्यपि हम भारतीय हैं ,और भारतीय परम्परा के अनुसार  शास्त्रों के विचार से लोकाचार [सामाजिकता कुछ अलग भी होती है ,किन्तु चाहे ,भाषा ,रंग ,रूप निवास रहन -सहन में भले ही भिन्नता हो ,परन्तु अभिवादन एक जैसा ही है -हाँ कुछ आंग्ल[अंग्रेगी ] भाषा के आदि हो जाने के कारण अभिवादन बदल जरुर गया है -ठीक उसी तरह से जैसे -शिखा ,पहनावा ,बोलने की कला ,अपनी उपाधि से तो भले ही दुनियां के किसी भी कोने में चले गए हों या रहते हों -इन तमाम बातों से आप दीखते तो वही हैं जो आपके पूर्वज थे किन्तु -जब कोई पूर्वजों के इलाका का कोई आपके स्वरूप को पहचानकर यह उम्मीद करे कि कोई अपना मिल गया ,तो शायद उसकी उम्मीद पर हम खड़े नहीं उतरते हैं,क्यों कि जिस प्रकार से आपका विवाह हो चूका हो और कोई दूसरी नव नवेली कन्या का अवलोकन संयोग से हो जाय तो आप अपनी पत्नी को भी पहचानने में देर नहीं करेंगें ,ठीक इसी प्रकार से अभिवादन का भी लोम और विलोम हो चूका है ,किन्तु हम अपनी संस्कृति और संस्कारों को नहीं भूलेंगें यही सोचकर कुछ प्रेरणादायक बातों से आप मित्रों का भी अभिवादन करते हैं ,चाहे आप आपको पसंद आये या न आये ||
        अस्तु -कभी -कभी हमलोग सत्य को असत्य बनाने में देर भी नहीं करते हैं ,ज्योतिष हो ,धर्म हो ,गुरु हों या फिर ,कोई भी नेक कार्ज हो,किन्तु आपलोग भी जानते हैं ,भागवान को भी गुरु के सिवा किसी ने नहीं देखा ,और यदि देखा है -तो गुरु की आस्था से ही , जब हम किसी भी वाहन पर विराजमान होते हैं,तो चालक पर यकीन करना ही पड़ता है-चाहे आप जानते हो कि ये शराबी है ,और वो भले ही शराबी हो ,आपको गन्तब्य तक जरुर पहुंचा देगा | जो हम पढ़ते हैं -अ ,आ इ ई ये भी किसी गुरु ने ही हमें बताया है तभी तो हम पढ़कर समझ जाते हैं ,और समझा भी देते हैं ,अपने पिता को भी हमने देखा नहीं है पहचान कराया गया है ,तभी तो हम अपने पिता को पिता मानते हैं | इसी प्रकार से ज्योतिष सत्य है आपके जीवन का ज्योतिष हिस्सा है जब आपके काम आती है तो आप भी उसे सत्य मानने लग जाते हैं | दवाई की किसी को आवश्यकता कब पड़ती है जब कोई वीमार होता है -वीमार होने पर हम दवाई को सत्य मने और यदि वीमार न हों तो उसके लिए भले ही दवाई सत्य हो किन्तु उसके लिए तो असत्य ही है ||
     भाव -संसार की सभी वस्तुओं को ब्रह्माजी ने प्रकृति के अनुरूप ही बनाया है ,जो हमें मिले वो सत्य और जो न मिले वो असत्य इस प्रकार की सोच नहीं रखनी चाहिए | जिन वस्तुओं से संसार का हित होता हो ,जिनकी आस्था के बिना प्रकृति में जीना असंभव हो -इन बातों की प्रेरणा देनी चाहिए ,कटुता और पराकाष्ठा से पड़े होकर खोज करनी चाहिए ,सम्मान और विवेक से जीना चाहिए ||
भवदीय निवेदक "झा शास्त्री " मेरठ |
निःशुल्क ज्योतिष सेवा रात्रि ८ से९ ऑनलाइन या फ़ोन से मित्र बनकर आप भी प्राप्त कर सकते हो, |
संपर्क सूत्र -09358885616     

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