भवदीय निवेदक "ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री "{मेरठ उत्तर प्रदेश }

"झा शास्त्री "मेरठ {उत्तर प्रदेश }

शनिवार, 28 अप्रैल 2012

"अपने विवेक का सतत उपयोग करें ?"

"अपने विवेक का सतत उपयोग करें ?"
-{१}-मन एवं मनुष्याणाम कारणं बंध मोक्षयोह ?
------भाव -मनुष्यों के बंधन और मोक्ष का कारण  उनका मन ही है ।अतः विवेक रूपी मन का प्रयोग से मोक्ष मिल सकता है । अविवेकी होकर बन्धनों के पाश में जकड़े ही रहते हैं ।।
{२} -नासमीक्ष्य परं स्थानं पुर्वमायतनं त्यजेत ?-
   ----भाव -दूसरा स्थान देखे बिना पहला स्थान नहीं छोड़ना चाहिए ।अर्थात --हमलोग किसी भी प्रलोभन में बहुत जल्दी उलझ जाते हैं --अतः विवेक से पथ का चयन करें ।
{३}-लोचनाभ्यां विहीनस्य दर्पणः किं करिष्यति ?
----भाव -आँखों से रहित व्यक्ति को दर्पण क्या लाभ पहुंचा सकता है ।-अर्थात किसी भी बात को विवेक से समझे बिना प्रत्युत्तर न दें ।।
-----{४}-यांचा मोघा वरमाधिगुने नाधमे लाभ्धकामा ।
-----भाव -सज्जन से निष्फल याचना भी अच्छी,किन्तु नीच से सफल याचना भी अच्छी नहीं --अर्थात -हमें मागना अच्छे लोगों से चाहिए चाहे मिले या न मिले ,किन्तु बुरे लोगों से मांगने से कुछ मिल भी जाये तो प्रसन्न नहीं होना चाहिए ।।
-----प्रियेषु सौभाग्य फला ही चारुता ?
---भाव --सुदरता प्रिय को प्रसन्न करने पर ही सार्थक है । अर्थात --- सुदरता की उपमा केवल साहित्य में प्रियतमा के लिए है ,यद्यपि सुन्दरता सबको प्रिय है ,परन्तु किसी भी सुदरता से प्रियतमा प्रसन्न हो जाये  -तो आपकी सुन्दरता सार्थक है ।।
----आपदि स्फुरति प्रज्ञा यस्य धीरः स एव  ही ?
----भाव --आपत्ति के समय जिसकी बुद्धि स्फुरित होती है ,वही धैर्यवान है----अर्थात आपत्ति के समय जो विवेक से काम लेते हैं,बिचलित नहीं होते हैं ,वही व्यक्ति विवेकवान होते हैं ।।
भवदीय -पंडित कन्हैयालाल झा 
  किशनपुरी धर्मशाला देहली गेट मेरठ {उत्तर प्रदेश }
     ज्योतिष सेवा रात्रि ८ से९ सभी मित्रों के लिए उपलब्ध रहती है ।
    सम्पर्कसूत्र -09897701636 ,09358885616       

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