भवदीय निवेदक "ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री "{मेरठ उत्तर प्रदेश }

"झा शास्त्री "मेरठ {उत्तर प्रदेश }

बुधवार, 20 जून 2012

"सर्प का -"कालसर्पयोग"से सम्बन्ध एक नजर ?"

"सर्प का -"कालसर्पयोग"से सम्बन्ध एक नजर ?"
---सर्प का भारतीय संस्कृति से गहरा सम्बन्ध है ।एक बार महर्षि "सुश्रुत "ने वैद्य धन्वन्तरी से पूछा कि हे भगवन !सर्पों की संख्या और उनके भेद बतायें ?वैद्य धन्वन्तरी ने कहा कि वासुकि जिनमे श्रेष्ठ हैं ,ऐसे  तक्षक आदि सर्प असंख्य हैं ।ये सर्प अन्तरिक्ष एवं पाताललोक के वासी हैं ।पृथ्वी पर पाये जाने वाले नामधारी सर्पों के भेद अस्सी प्रकार के हैं ।
----भारतीय वांग्मय में विषधर सर्पों की पूजा होती है ।हिन्दू मान्यताओं में सर्प को मारना उचित नहीं समझा जाता -तथा जहाँ -तहाँ उनके मंदिर भी पाए जाते हैं ।नागपंचमी को सर्पों की विशेष पूजा का प्रावधान है ।पुराणों में शेषनाग का वर्णन है ।भगवान श्रीकृष्ण ने यमुना नदी से कालिया नाग को नाथा था ।सर्पों के बारे में पुराणों में अनेक  कथाये प्रचलित हैं ।सर्पों को देवयोनि का प्राणी माना जाता है ।नए भवन के निर्माण समय नीव में सर्प की पूजाकर चांदी का सर्प रखा जाता है ।वेद के अनेक मंत्र सर्प से सम्बंधित हैं ।
--------नाग की हत्या जन्म जन्मान्तर तक पीछा नहीं छोड़ती है ।नागवध का शाप पुत्र -संतति में बाधक होता है ।कई स्थानों पर नागवध शाप दूर करने के लिए "पिष्टमय नाग "का विधिवत पूजन करके दहन किया जाता है ।फिर उस नाग की भस्मी के तुल्य सुवर्ण दान करने का विधान है ।
----शास्त्रों में सर्प को काल का पर्याय कहा गया है ।काल -आदि ,मध्य ,अन्त से रहित है ।मनुश्यादी प्राणियों का जीवन -मरण काल के आधीन है ।काल सर्वथा गतिशील है ।
-----कालसर्प योग सम्भवतः समय की गति से जुड़ा हुआ योग है !!
-------निवेदक पंडित कन्हैयालाल "झा शास्त्री {मेरठ -उत्तर प्रदेश }

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