"शंखपाल "नामक कालसर्पयोग का स्वाभाव और प्रभाव ?"
--------"शंखपाल "नामक कालसर्पयोग -तब बनता है जब जन्मकुंडली के चतुर्थ भाव में "राहु "और दशम भाव में "केतु "हो ,तथा उन दोनों के बीच सूर्यादि सातो ग्रह स्थित हो ।----"शंखपाल "नामक कालसर्पयोग में जन्म लेने वाले लोग अपने माता -पिता या {सास -ससूर}से दुखी रहते हैं । अथवा इनके द्वारा माता -पिता को कष्ट पहुँचता है ।इनके मित्रगण स्वार्थी होते है ।चचेरे परिवार से जान जोखिम का भय बना रहता है ।इनके शरीर में कैंसर या कितानुजन्य कीटाणुजन्य विविध रोगों का भय बना रहता है ।ऐसे लोग स्वतंत्रता एवं स्वावलंबन का विशेष महत्त्व देते हैं ।ऐसे लोग काम पिपासा से विशेष पीड़ित रहते हैं या काम पिपासा अत्यधिक होती है ।इनका स्वाभाव परोपकारी होता है ,किन्तु यश नहीं मिलता है ।।
------------------नोट --कालसर्पयोग लाभदायक होने पर योग कहलाता है ,किन्तु दूषित होने पर --कालसर्पदोष बन जाता है -----हमारे विचार से कालसर्पयोग ही कहा जाय तो उत्तम रहेगा -----शरीर में रोग होने पर हम निदान करते हैं और स्वस्थ भी हो जाते हैं ---इसी प्रकार से कालसर्प दोष का निदान होने पर यह कालसर्पयोग बन जाता है ?
-------निवेदक पंडित के0 एल0"झा शास्त्री "मेरठ -{उत्तर प्रदेश }
---ज्योतिष सहायता हेतु ---सूत्र --9897701636---9358885616-----!!
--------"शंखपाल "नामक कालसर्पयोग -तब बनता है जब जन्मकुंडली के चतुर्थ भाव में "राहु "और दशम भाव में "केतु "हो ,तथा उन दोनों के बीच सूर्यादि सातो ग्रह स्थित हो ।----"शंखपाल "नामक कालसर्पयोग में जन्म लेने वाले लोग अपने माता -पिता या {सास -ससूर}से दुखी रहते हैं । अथवा इनके द्वारा माता -पिता को कष्ट पहुँचता है ।इनके मित्रगण स्वार्थी होते है ।चचेरे परिवार से जान जोखिम का भय बना रहता है ।इनके शरीर में कैंसर या कितानुजन्य कीटाणुजन्य विविध रोगों का भय बना रहता है ।ऐसे लोग स्वतंत्रता एवं स्वावलंबन का विशेष महत्त्व देते हैं ।ऐसे लोग काम पिपासा से विशेष पीड़ित रहते हैं या काम पिपासा अत्यधिक होती है ।इनका स्वाभाव परोपकारी होता है ,किन्तु यश नहीं मिलता है ।।
------------------नोट --कालसर्पयोग लाभदायक होने पर योग कहलाता है ,किन्तु दूषित होने पर --कालसर्पदोष बन जाता है -----हमारे विचार से कालसर्पयोग ही कहा जाय तो उत्तम रहेगा -----शरीर में रोग होने पर हम निदान करते हैं और स्वस्थ भी हो जाते हैं ---इसी प्रकार से कालसर्प दोष का निदान होने पर यह कालसर्पयोग बन जाता है ?
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