"शेषनाग "नामक कालसर्पयोग के स्वभाव और प्रभाव ?
-----शेषनाग --नामक कालसर्पयोग जन्मकुंडली में तब बनता है ,जब जन्मकुंडली के द्वादश {बारहवें }भाव में "राहु "हो एवं छठे {षष्ठम }भाव में "केतु हो ,साथ ही सूर्य के साथ -साथ सातों ग्रह बीच {मध्य }में स्थित हों ।---"शेषनाग "नामक कालसर्पयोग में जन्म लेने वाले लोग देश -परदेश कहीं भी एक जैसी परिस्थितियों में रहते हुए अपने विकास ,खान -पान,रहन -सहन पर विशेष ध्यान देते हैं ।--इनके इनके शत्रु तंत्र -मन्त्रों की क्रियाओं द्वारा अत्यधिक हानी पंहुचाते हैं ।---दोस्तों के साथ कार्य ,व्यापार में नुकसान उठाना पड़ता है ।देश -विदेश के संपर्क से लाभ मिलता है ।खूब सोच समझकर किये गये कामों में अक्सर हानी होती है ,किन्तु जो काम अचानक हो जाता है -वही विशेष लाभदायक होता है ।।
--------भवदीय आत्मबंधु ---पंडित कन्हैयालाल "झा शास्त्री " मेरठ -{भारत }
-----शेषनाग --नामक कालसर्पयोग जन्मकुंडली में तब बनता है ,जब जन्मकुंडली के द्वादश {बारहवें }भाव में "राहु "हो एवं छठे {षष्ठम }भाव में "केतु हो ,साथ ही सूर्य के साथ -साथ सातों ग्रह बीच {मध्य }में स्थित हों ।---"शेषनाग "नामक कालसर्पयोग में जन्म लेने वाले लोग देश -परदेश कहीं भी एक जैसी परिस्थितियों में रहते हुए अपने विकास ,खान -पान,रहन -सहन पर विशेष ध्यान देते हैं ।--इनके इनके शत्रु तंत्र -मन्त्रों की क्रियाओं द्वारा अत्यधिक हानी पंहुचाते हैं ।---दोस्तों के साथ कार्य ,व्यापार में नुकसान उठाना पड़ता है ।देश -विदेश के संपर्क से लाभ मिलता है ।खूब सोच समझकर किये गये कामों में अक्सर हानी होती है ,किन्तु जो काम अचानक हो जाता है -वही विशेष लाभदायक होता है ।।
--------भवदीय आत्मबंधु ---पंडित कन्हैयालाल "झा शास्त्री " मेरठ -{भारत }
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