भवदीय निवेदक "ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री "{मेरठ उत्तर प्रदेश }

"झा शास्त्री "मेरठ {उत्तर प्रदेश }

शनिवार, 8 सितंबर 2012

"विषाक्त "नामक कालसर्पयोग का स्वभाव और प्रभाव ?

    
--------विषाक्त --नामक कालसर्पयोग जन्मकुंडली में तब बनता है जब एकादश भाव में "राहु "हो एवं पंचम भाव में "केतु "हो,साथ ही सातों ग्रह उन दोनों के बीच स्थित हों ।---"विषाक्त "नामक कालसर्पयोग में जन्म लेने वाले लोग -निर्माणकार्य,नईखोज एवं प्रगतिशील जीवन के लिए बहुत ही संघर्ष करते हैं किन्तु सफल रहते हैं ।--भावुकता तथा उदारता के कारण इन्हें आर्थिक क्षति भी उठानी पड़ती है ।----विद्या ,धन और पुत्र सम्बन्धी सुख की पूर्णतः {मनोनुकूल } प्राप्ति नहीं होती है ।---इन तीनों में से कोई एक ही सुख मिल पाता है ।बांकी के दो सुखों से वंचित ही रह जाते हैं । ----इनका स्वभाव सरल और व्यवसायिक होता है ।----काका ,ताऊ ,चाचा आदि के परिवार से अति चिंतित रहते हैं ।
----------भाव ---ज्योतिष को नेत्र की अपधि मिली है और आँखों से देखने के बाद मन किसी भी बात को सत्य मान लेता है ---और जब मन की स्वीकृति मिल जाती है -तो फिर एक कान से दूसरे कानों तक पंहुंचने में देर नहीं लगती है ।अतः  ---ज्योतिष को फलादेश के कारण प्रसिद्धि मिलती है ---इसलिए फलादेश में जन्मकुंडली के योगों  की अत्यधिक महत्त्व है ---इन योगों के बिना ज्योतिष विद्या निरस हो जाती है । ग्रहों के संयोग से योग बनते हैं जो हमें राजा से रंक और रंक से राजा बनाते है ।आइये हमलोग भी अपनी -अपनी जन्मकुंडली में योगों की तलाश करें जो हमें नीरस भरी जिन्दगी को खुशहाल बना दे ।
              ----भवदीय आत्मबंधु -ज्योतिष सेवा सदन {पंडित कन्हैयालाल "झा शास्त्री "मेरठ -{भारत }

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