भवदीय निवेदक "ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री "{मेरठ उत्तर प्रदेश }

"झा शास्त्री "मेरठ {उत्तर प्रदेश }

मंगलवार, 28 सितंबर 2010

                                            "आप माने या न माने "
साल में १५ दिन के लिए पितृ पक्ष का समागम होता है | शास्त्रों का मत भी है .एवं किंबदंती भी है ,कि पितृगण इस पक्ष में अपने वंशों की रक्षा हेतु [ कल्याण ] किसी न किसी रूप में जरुर भूमंडल पर आते हैं | जो लोग तर्पण ,श्राद्ध ,विस्वेदेवा ,ब्राह्मन भोजन कराते हैं, तो उससे वो तृप्त होकर आशीर्वाद देते हुए अपने -अपने लोक को चले जाते हैं ,किन्तु जो लोग ये कर्म नहीं करते हैं,  तो उनके पितृ  भूमंडल पर आकर बहुत ही दुखित हो जाते हैं ,एवं रहते तो १५ दिन भूमंडल पर ही हैं ,किन्तु पहले तो वो यह कामना करते हैं. कि यदि हमारे वंश का कोई भी हमें तिलांजलि दे दे तो भी हम ख़ुशी पूर्वक अपने -अपने लोकों को चले जायेंगें ,किन्तु जब उन्हें किसी के द्वारा कुछ भी प्राप्त नहीं होता है ,तो वो कुपित होकर चले जाते हैं ,और साथ ही शाप से वो परिवार ग्रसित हो जाता है |
>अब जानते हैं ,कि उनका आगमन किन किन रूपों में होता है ? हमारे पित्रीगण बहुत ही सूक्षम रूप धारण कर किसी न किसी जीव में समाहित हो जाते हैं वो चाहे -कुत्ता हो ,बिल्ली हो ,कोएँ हों या गाय हों या फिर विस्वेदेवा ही हो -इसलिए हम लोग श्राद्ध के दिन इन जीवों को श्रद्धा सुमन "अन्न " अर्पण करते हैं | भाव -यदि आपने अपने पूर्वजों के लिए नहीं करेंगें तो क्या आने वाली पीढ़ी आपके लिए कुछ करेगी | >विशेष कल < निवेदक झा शास्त्री मेरठ |     

1 टिप्पणी:

ज्योतिष सेवा सदन { पंडित कन्हैयालाल झा शास्त्री "}{मेरठ } ने कहा…

"आप माने या न माने "

साल में १५ दिन के लिए पितृ पक्ष का समागम होता है | शास्त्रों का मत भी है .एवं किंबदंती भी है ,कि पितृगण इस पक्ष में अपने वंशों की रक्षा हेतु [ कल्याण ] किसी न किसी रूप में जरुर भूमंडल पर आते हैं | जो लोग तर्पण ,श्राद्ध ,विस्वेदेवा ,ब्राह्मन भोजन कराते हैं, तो उससे वो तृप्त होकर आशीर्वाद देते हुए अपने -अपने लोक को चले जाते हैं ,किन्तु जो लोग ये कर्म नहीं करते हैं, तो उनके पितृ भूमंडल पर आकर बहुत ही दुखित हो जाते हैं ,एवं रहते तो १५ दिन भूमंडल पर ही हैं ,किन्तु पहले तो वो यह कामना करते हैं. कि यदि हमारे वंश का कोई भी हमें तिलांजलि दे दे तो भी हम ख़ुशी पूर्वक अपने -अपने लोकों को चले जायेंगें ,किन्तु जब उन्हें किसी के द्वारा कुछ भी प्राप्त नहीं होता है ,तो वो कुपित होकर चले जाते हैं ,और साथ ही शाप से वो परिवार ग्रसित हो जाता है |
>अब जानते हैं ,कि उनका आगमन किन किन रूपों में होता है ? हमारे पित्रीगण बहुत ही सूक्षम रूप धारण कर किसी न किसी जीव में समाहित हो जाते हैं वो चाहे -कुत्ता हो ,बिल्ली हो ,कोएँ हों या गाय हों या फिर विस्वेदेवा ही हो -इसलिए हम लोग श्राद्ध के दिन इन जीवों को श्रद्धा सुमन "अन्न " अर्पण करते हैं | भाव -यदि आपने अपने पूर्वजों के लिए नहीं करेंगें तो क्या आने वाली पीढ़ी आपके लिए कुछ करेगी | >विशेष कल < निवेदक झा शास्त्री मेरठ |