"काल सर्प दोष का निदान शास्त्र सम्मत करें !"
हम जब प्राचीन कालीन ग्रंथों का अबलोकन करते हैं,जैसे -मनुश्मृति ,शतपथ ब्राह्मण ,वेदान्तसार ,पुराण आदि -आदि तो हमने देखा कि-प्राचीन काल में -राजतन्त्र युग था -तो प्रजा की पीड़ा राजा को होती थी ,तथा "राजा " अपने राज्य की रक्षा के लिये यग्य कराते थे ,इसलिए महर्षि ,राजर्षि ,ब्रह्मर्षि ,अटूट साधना के साथ -साथ,अपने शिष्य को तो वेदाध्ययन तो कराते ही थे -राजा महाराजाओं के साथ प्रजाओं [समाज ] को भी सुसभ्य संस्कृत एवं संस्कार से युक्त भी कराते थे | तब का "यग्य" साधारण नहीं होते थे -शतचंडी,लक्षचंडी,सहस्रचंडी,विष्णु महायग्य,शिवरूद्र महायग्य , इस प्रकार के अनंत महायग्य हुआ करते थे | समय बदला ,लोग बदले ,संस्कृत और संस्कार के रूप भी बदल गए ,आज हम जिस गंगा के जल को पान करके शुद्ध होते हैं उसी जल में तमाम अपवित्र वस्तु इस लिये डाल देते हैं,कि हमें यह प्रतीत होता है-कि हम धर्म कर रहे हैं || ठीक इसी प्रकार से "ज्योतिष के दो रूप होते हैं-[१]-गणित -जो हम- जब जातक भूमंडल पर अबतरित होता है ,उस जातक का जिस समय आगमन होता है उस -घडी [समय ] घटी ,पल अर्थात -समय ,तिथि ,मास,एवं सम्बत के अनुसार उस जातक के जीवन में घटित घटना का उल्लेख -गणित के द्वारा करते हैं|| जो समय के ऊपर ही निर्भर रहता है -एक तो गणित नीरस और कठिन होने के कारण [ये आधुनिक तकनीकी के आ जाने से एवं मेहनत का मूल्य नहीं मिलने के कारण] हमलोग इसे छोड़ते जा रहे हैं ||
[२]-ज्योतिष का दूसरा रूप है "फलित " ये इतना रस से भरा होता है ,कि कोई भी ज्योतिषीय बन जाये तो कठिन बात नहीं है ,ये आधुनिक तकनीकी की निर्मित कुडली के आगे सटीक नहीं बैठती है-मेरा मानना है ,फलित को जानने या बताने के लिये हमें माँ सरस्वती -या अपने गुरु की क्रपा की परम आवश्यकता होती है,जो आजकल नगण्य होती जा रही है || [काल सर्प दोष का निदान को हम कल भी समझने का प्रयास करेंगें ] भवदीय निवेदक "झा शास्त्री" मेरठ [उ प]
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