" ज्योतिष को समझने के लिए "अयन" को भी समझना पड़ता है !"
मित्र प्रवर ,राम राम ,नमस्कार ||
"सूर्य "का आना और जाना -को ही -"अयन कहते हैं |ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार -"अयन "दो होते हैं -जिनका समय -१३ या १४ जनवरी से शुरू होकर ,जो संक्रमण १५ जुलाई को समाप्त होता है उसे उत्तरायण कहते हैं | इसी प्रकार १६ जुलाई से १२ जनवरी तक की कालावधि को दक्षिणायन समझी जाती है ||[१]
उत्तरायण में शुभ कार्ज किये जाते हैं,एवं दक्षिणायन में कोई भी शुभ कार्ज नहीं किये जाते हैं |
[२]-उत्तरायण सूर्य में जन्म लेने वाला व्यक्ति प्रायः सदैव प्रसन्नचित रहता है,स्त्री एवं पुत्रादि से सुख पाने वाला ,दीर्घायु ,श्रेष्ठ ,आचार विचार वाला ,उदार व् धैर्यशील होता है ||
[२]-दक्षिणायन-में जन्म लेने वाला जातक -कृपण ,पंडित ,लोक प्रसिद्ध ,पशु -पलक ,निष्ठुर ,दुराग्रही एवं अपनी ही बात को मानने वाला है |
कुछ ज्योतिष के ग्रन्थ [संहिता ]में उत्तरायण को देवताओं का दिन कहा है ,जबकि "सूर्य "विषुव वृत्त से उत्तर में रहता है | मेरु [पर्वत ]पर रहने वाले देवताओं वो ६ मास तक सतत दिखाई देता है,अतः इस कथन से भी सूर्य को युगल गतियों का होना भी सिद्ध होता है |\
"अयन "शब्द का पर्योग किस काल के लिए किया गया है ,इसका उल्लेख "वेदों में अन्यत्र नहीं मिलता है ||
"सूर्य "का आकाशीय नक्षत्रों और ग्रहों पर अमिट प्रभाव पड़ता है| सही माने तो -सृष्टि का संचालन ही सूर्य से होता है ||
भवदीय निवेदक "झा शास्त्री"
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