"पात्रता न होने पर ,यन्त्र ,मंत्र एवं तंत्र निष्फल हो जाते हैं?"
मित्रप्रवर ,राम -राम ,नमस्कार |
संसार में सभी जीव अपने -अपने नियमानुसार रहते हैं | उसमें भी मनुष्य को सर्वोत्तम स्थान मिला है ,क्योंकि विवेक और ज्ञान के साथ-साथ मनुष्य के जीने की कला सर्वोत्तम होती है |इसलिए परमात्मा भी मानव देह के लिए ललायित रहते हैं | जिस प्रकार से सभी जीवों का भार परमात्मा के अधीन होना है ,ठीक उसी प्रकार से -"राजा का अधिकार भी सभी प्रजाओं के हित के लिए होता है | किन्तु समय बदला "यथा राजा तथा प्रजा - प्रजातंत्र में ये बात भी बदल गयी सभी राजा हो गए ,इसलिए जो भी सत्य है उस बात को धन के द्वारा असत्य में हमहीं परिवर्तीत कर दिए | ये परिवर्तन के केवल सत्य या असत्य का ही नहीं हुआ है -धर्म ,जाति ,ग्रन्थ,गुरु ,शिष्य,संस्कार व्यवहार ,रहन -सहन तमाम बातों का हुआ है |
अस्तु -आज ब्राह्मण को पढने पढ़ाने की जगह व्यापर करना पड़ता है | क्षत्रिय को -रक्षा की जगह अपनी रक्षा की सोचनी पड़ती है |वैश्य को- व्यापर की जगह -अतीत की चिंता सता रही है | शूद्र [सेवक ] को सेवा की जगह सेवकाई पसंद आ रही है | इन बातों का सबसे अत्यधिक प्रभाव पड़ने दिखने लगे हैं | यन्त्र ,मंत्र एवं तंत्र को कोई मुद्रा से नहीं खरीद सकता है |जब गुरु की परम कृपा होती है ,तब हम यन्त्र मंत्र एवं तंत्रों को जान पाते हैं | इन चीजों की प्राप्ति के लिए असीम साधना करनी पड़ती है ,और साधना सभी नहीं कर सकते -ये गुण केवल ब्राह्मणों में ही पाए जाते हैं-इसलिए पढना और पढ़ाना ही ब्राह्मणों का धर्म होता है | सहनशक्ति केवल क्षत्रियों में ही संभव है -ये ही मरना और मारना जानते हैं | इसलिए ये -राजा होते हैं | वैश्य -ही गाय,ब्राह्मण ,पृथ्वी ,मंदिर समस्त जो आस्था और विस्वास की वस्तुएं है-वो वैश्य में ही हैं -ये न हों तो श्रद्धा ,ब्राह्मणों की पूजा ,सम्मान कोई नहीं करेगा | शूद्र -में ही समर्पण भाव ,सेवा का भाव होता है ,निर्माण की कला होती है |किन्तु -आज हम सब ये बातें नहीं मानते हैं | एक दुसरे पर आरोप - प्रत्यारोप,छीटा -कसी,करते हैं ,इसलिए आज हम बिलासिता सम्बन्धी आव्स्यक्ताओं की पूर्ति के लिए अपने आपको बढ़ाते जा रहे हैं | क्या लगता है -यन्त्र घर में रख लेने सेअशुध मंत्र बोल लेने से ,गलत तंत्रों का प्रयोग करने से ,आपको सम्पन्नता मिल जाएगी | शास्त्रों में जब ब्राह्मणों की -संध्या ,गायत्री मंत्र को ओरों से अलग बनाया है | जो संध्या ब्राहमण करेगें वो क्षत्रिय नहीं कर सकते -तो मन्त्रों का भी तो पर्योग अलग -अलग है | वैदिक मंत्र और पुराणिक मंत्र | जो द्विज नहीं हैं -वो वैदिक मन्त्रों का पर्योग न करें उनके लिए पुराणिक मंत्र का पर्योग करना चाहिए | इन बातों से -आप भले ही भेद भाव समझें ,आप उपहास करें ,किन्तु ये जो ग्यान विहीन या आस्थाविहीन होते हैं-वही कह सकते हैं | सबकी आत्मा में परमात्मा का निवास होता है ,किन्तु संस्कार तो अपने -अपने ही होते हैं ,जब वशिष्ठ जैसे ऋषि -पर्ण कुटी में निवास करते थे -वो चाहते तो ,अयोध्या के महल में ही रहते ,जब भगवान् राम को भी शिक्षा के लिए आश्रम में ही जाना पड़ा ,वो चाहते तो महल मन ही पढ़ते ,इससे यह अहसास होता है ,कि आप तंत्र ,मंत्र एवं यंत्रों को घर में लाने से पहले या पर्योग करने से पहले आप पात्र बने,निःस्वार्थ अपने कर्म को करें ,प्रारब्ध को कर्म के द्वारा ही बदला जा सकता है ,यन्त्र ,मंत्र एवं तंत्रों द्वारा कर्मनिष्ठ होकर ही ,गुरु की कृपा से ही आप कृपा के पात्र बन सकते हैं ||
भवदीय निवेदक "झा शास्त्री " मेरठ |
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