भवदीय निवेदक "ज्योतिष सेवा सदन "झा शास्त्री "{मेरठ उत्तर प्रदेश }

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गुरुवार, 6 सितंबर 2012

"शंखनाद"{शंखचूड }नामक कालसर्पयोग के स्वाभाव और प्रभाव ?

       "शंखनाद"{शंखचूड }नामक कालसर्पयोग के स्वाभाव और प्रभाव ?
-----------"शंखनाद "शंखचूड़"नामक कालसर्पयोग --जन्मकुंडली में तब बनता है जब जन्मकुंडली के नवम भाव में "राहु "हो और तृतीय भाव में "केतु "साथ ही सातों ग्रह उन दोनों के बीच स्थित हों ।--"शंखनाद "नामक कालसर्पयोग में -जन्म लेने वाले लोग अपने सांसारिक जीवन से दुखी{निराश } रहते हैं ।भाग्य एवं कर्मक्षेत्र उत्तम होते हुए भी, किसी को स्त्री कष्ट रहता है, तो किसी को संतान कष्ट रहता है । -----जीवन में जाने -अनजाने में कुछ ----गलतियाँ खुद से हो जातीं हैं --जिस कारण से कठिन चिंतित भी रहते हैं ।ऐसे लोगों के गुप्त शत्रु बहुत होते हैं ।शत्रुता अपने घर से ही शुरू होती है ।वही शत्रुता बाहरी जीवन फैल जाती है ।इनके कार्य और नाम की लोकप्रियता अधिक होती है --जिस कारण से छाये रहते हैं ।।
       नोट ---हर दोष में भी खूबी होती है -----कालसर्पयोग अन्नत प्रकार के हैं ---किन्तु  दोष कम खूबी विशेष होती होती है -----हम प्रत्येक योगों का फलित लिखने की कोशिश कर रहे हैं -----आप  मित्र बंधू --अपनी -अपनी कुंडली में विदित कालसर्पयोग का आकलन करें ------आकलन के बाद -संभव है -कालसर्पयोग को दोष नहीं समझेंगें ---किन्तु यह योग तभी सफल होते हैं जब सही आकलन के साथ -साथ सही निदान कर्मकांड विद्वानों से हो ?
-----निवेदक -पंडित कन्हैयालाल "झा शास्त्री "मेरठ -{भारत }
    ज्योतिष सलाह हेतु ---हेल्प लाइन ---9897701636--9358885616----!!

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