"वैवाहिक सुख में कुंडली का दूसरा विचार "वश्य विचार "
-----वश्य विचार अर्थात --दोनों के विचार जीवन मिलेंगें या नहीं -क्योंकि युवावस्था में प्रेम [काम पिपासा }के आगे उचित अनुचित का बोध प्रायःअल्प होता है -इसलिए भारतीय परम्परा में अभिभावक ही वर -वधु का चयन के बाद कुंडली मिलान कराते हैं जो सत्य के साथ -साथ भेद भाव रहित होता है ।
--------{1}-मेष ,वृष ,सिंह ,धनु का परार्ध -मकर का पूर्वार्ध चतुष्पद संज्ञक कहा गया है ।{2}-मिथुन ,कन्या ,तुला ,कुम्भ और धनु का पूर्वार्ध द्विपाद {मानव }संज्ञक माना जाता है ।{3}-मकर का उतरार्ध ,सम्पूर्ण मीन राशि को जलचर कहते हैं ।-{4}-सिंह को वनचर माना गया है ।कर्क -को कीट ,वृश्चिक को सरीसृप कहा गया है ।सिंह को छोड़कर सब राशि नर राशि के वश्य होती है और जलचर राशि भक्ष्य है ।वृश्चिक को छोड़कर सब राशि सिंह के वश हैं ।अन्य राशियों के वश्यावश्य को व्यवहार से जानना चाहिए ।
-----मैत्री ,वैर ,भक्ष्य ----ये तीन प्रकार के वश्य कूट होते हैं ----{1}--यदि वर -कन्या की राशि में परस्पर वैर भक्ष्य हो तो 00गुण मानते हैं---2---अगर दोनों में मैत्री हो तो -02 गुण होते हैं -----3---किन्तु वश्य वैर हो तो -01 गुण मानते हैं परन्तु वश्य भक्ष्य होने पर आधा गुण होता है ।।
--नोट --आपस में प्रेम हो गया हो ,उन नामों से मिलान करें जिन नामों से मिलान हो अथवा -कर्मकांड के द्वारा निदान से भी विवाह संभव है ---किन्तु अपनी परम्परा को सच्ची निष्ठां से निभाएं ?
----प्रेषकः पंडित कन्हैयालाल "झा शास्त्री "{मेरठ -भारत }
सहायता सूत्र -9358885616------।।
-----वश्य विचार अर्थात --दोनों के विचार जीवन मिलेंगें या नहीं -क्योंकि युवावस्था में प्रेम [काम पिपासा }के आगे उचित अनुचित का बोध प्रायःअल्प होता है -इसलिए भारतीय परम्परा में अभिभावक ही वर -वधु का चयन के बाद कुंडली मिलान कराते हैं जो सत्य के साथ -साथ भेद भाव रहित होता है ।
--------{1}-मेष ,वृष ,सिंह ,धनु का परार्ध -मकर का पूर्वार्ध चतुष्पद संज्ञक कहा गया है ।{2}-मिथुन ,कन्या ,तुला ,कुम्भ और धनु का पूर्वार्ध द्विपाद {मानव }संज्ञक माना जाता है ।{3}-मकर का उतरार्ध ,सम्पूर्ण मीन राशि को जलचर कहते हैं ।-{4}-सिंह को वनचर माना गया है ।कर्क -को कीट ,वृश्चिक को सरीसृप कहा गया है ।सिंह को छोड़कर सब राशि नर राशि के वश्य होती है और जलचर राशि भक्ष्य है ।वृश्चिक को छोड़कर सब राशि सिंह के वश हैं ।अन्य राशियों के वश्यावश्य को व्यवहार से जानना चाहिए ।
-----मैत्री ,वैर ,भक्ष्य ----ये तीन प्रकार के वश्य कूट होते हैं ----{1}--यदि वर -कन्या की राशि में परस्पर वैर भक्ष्य हो तो 00गुण मानते हैं---2---अगर दोनों में मैत्री हो तो -02 गुण होते हैं -----3---किन्तु वश्य वैर हो तो -01 गुण मानते हैं परन्तु वश्य भक्ष्य होने पर आधा गुण होता है ।।
--नोट --आपस में प्रेम हो गया हो ,उन नामों से मिलान करें जिन नामों से मिलान हो अथवा -कर्मकांड के द्वारा निदान से भी विवाह संभव है ---किन्तु अपनी परम्परा को सच्ची निष्ठां से निभाएं ?
----प्रेषकः पंडित कन्हैयालाल "झा शास्त्री "{मेरठ -भारत }
सहायता सूत्र -9358885616------।।
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